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लुधियाना में गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी: मोटापे को कम करो कुछ पलों में

अगर पाना चाहते हो सुन्दर और आकर्षित शरीर तो मोटापे को कम करें अभी

क्या है गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी ?

बता दे कि यह वो प्रक्रिया है जिससे आज के युवा काफी परेशान रहते हैं,जोकि मोटापा के नाम से विख्यात है | तो आज के इस लेखन में हम जानेगे की आखिर है क्या ये गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी….,,

  • बता दे कि प्रिस्टीन केयर एक एल्यूरियन प्रोग्राम की पेशकश करता है, जिसमें एक ऐसी दवा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें बिना ऑपरेशन के गैस्ट्रिक बैलून का निर्माण होता है।
  • और साथ ही इसे दुनिया की पहली और मोटापा कम कर, निगलने वाली बैलून कैप्सूल दवा के नाम से जाना जाता हैं और इस दवाई से 16 सप्ताह में औसतन 15% तक वजन कम किया जा सकता है |

प्रक्रिया क्या है इस सर्जरी की :

बता दे की इस सर्जरी को निम्नलिखित प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है जैसे……,,

  • दरअसल, इस प्रक्रिया में भूख लगने का संकेत आपके दिमाग तक नहीं पहुंचता, जिससे आपको भूख कम लगती है और मोटापे को कम किया जा सकता है |
  • और यहाँ गौरतलब करने वाली बात ये हैं कि इस प्रक्रिया में डॉक्टर आपको सेलाइन वाटर चढ़ाते हैं, ताकि आपकी भूख की क्षमता को कम किया जा सकें |
  • एक एंडोस्कोप ( पतली और लचीली ट्यूब) का उपयोग करके इस प्रक्रिया में डॉक्टर मुंह के माध्यम से और पेट में गुब्बारा विस्थापित करते है। पेट में जगह घेरने के लिए गुब्बारे को खारे पानी के घोल से भर दिया जाता है, जिससे भोजन और पेय के लिए कम जगह बचती है |

सुझाव :

 अगर आप मोटापे से है परेशान तो गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट का करे इस्तेमाल और मोटापे से पाए निज़ात |

कौन से लोग है जो गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट करवा सकते है :

निम्नलिखित कुछ ऐसे लोग है जो इस ट्रीटमेंट को करवा सकते है…..,,

  • पहला जिन लोगों के पेट की कोई सर्जरी न हुई हो |
  • दूसरा यदि आपका बीएमआई 27 से ऊपर है |
  • तीसरा जिन लोगों ने वजन कम करने के अनगिनत असफल प्रयास किए हो |
  • चौथा बांझपन से जूझने वाली महिलाएं।
  • पांचवा डायबिटीज वाले लोग |

गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट करवाने के बाद किन बातों का रखे ध्यान :

निम्नलिखित कुछ बातों का ध्यान रख आप अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं……..

  • धूम्रपान, शराब और तंबाकू के सेवन से बचें |
  • बिना डॉक्टर के परामर्श से किसी भी दवा को शुरू या बंद न करें |
  • निर्देशित उच्च प्रोटीन वाले आहार का पालन करें |
  • चीनी, वसायुक्त और मसालेदार भोजन से बचें |
  • खूब पानी पिएं और हाइड्रेटेड रहें |

गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट का हमारे जेब पर कितना असर पड़ सकता हैं :

 बता दे की मोटापे को कम करने के लिए हम इस ट्रीटमेंट का इस्तेमाल करते है,जिसकी लाग़त हर हॉस्पिटल में इसके उपचार की सुविधा के हिसाब से होती हैं और जिसकी लागत तक़रीबन 70,000 के आस-पास आती हैं |

क्या गैस्ट्रिक बैलून ट्रीटमेंट से हम हवा में उड़ सकते है ?

जी हां, आप पेट के इस गुब्बारे से हवा में उड़ सकते हैं क्युकि वाणिज्यिक हवाई जहाज सामान्य वायु दबाव बनाए रखते हैं, जिसका अर्थ ये है कि गैस्ट्रिक गुब्बारे के साथ उच्च ऊंचाई पर यात्रा करने में कोई समस्या नहीं है |

निष्कर्ष :

यदि आप मोटापे से अत्यधिक परेशान है तो लुधियाना में ही लुधियाना गैस्ट्रो एंड गायनी सेंटर है यहाँ आकर गैस्ट्रिक बैलून सर्जरी करवाए और मोटापे से निज़ात पाए और इसके साथ ही अगर आप, यहाँ पर आए तो एक बार गैस्ट्रिक गुब्बारा ट्रीटमेंट के स्पेस्लिस्ट डॉ. कार्तिक गोयल और डॉ. शुचिता बत्रा से इस परेशानी के बारे में जरूर सलाह ले|

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महिलाओं में बवासीर की समस्या क्या है और इस दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

बवासीर एक बहुत ही मुसीबत भरी बीमारी है। जिसमें व्यक्ति का उठना-बैठना तक मुश्किल हो जाता है। यह बहुत से लोगों को हो जाती है। बवासीर गुदा में अंदर की तरफ या बाहर मस्सों को पैदा कर देती है। जिसमें बहुत दर्द भी होता है और कभी तो खून भी आता है। लेकिन बवासीर का समय पर उपचार कर इससे राहत पाई जा सकती है। तो चलिए जानते है की महिलाओं में बवासीर के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है, और इस समस्या से वह कैसे खुद का बचाव आसानी से कर सकती है, इसके बारे में चर्चा करेंगे ;

बवासीर की समस्या क्या है ?

  • बवासीर को पाइल्स भी कहते है। यह एक तकलीफ से भरी बीमारी है। इसमें गुदा के अंदर की तरफ और बाहर की तरफ सूजन की समस्या आ जाती है। बवासीर गुदा नहर में एक तरह की रक्त वाहिकाएं होती है। यह फैल भी जाती है।
  • बवासीर में गुदा के अन्दर और बाहर मस्से हो जाते है। और वहीं बवासीर दो तरह की होती है। आंतरिक बवासीर और बाहरी बवासीर। 60% लोगों में यह जीवन में कभी ना कभी होती ही है।
  • बाहरी बवासीर में गुदा बाहर होती है जो त्वचा से ढकी होती है। बाहरी बवासीर को देखा जा सकता है।
  • आंतरिक बवासीर गुदा नहर के अंदर होती है। जिसे देख नहीं सकते है आंतरिक बवासीर से खून बहने की संभावना अधिक होती है। स्थिति गंभीर होने पर यह बढ़ भी जाती है।

महिलाओं में बवासीर के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

  • गुदा क्षेत्र में खुजली होती है और तेज जलन भी होती है। इसके साथ ही लालीपन की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।  
  • मरीजों को शौचालय जाने के बाद भी ऐसा लगता है जैसे फिर से मल त्याग करने की आवश्यकता हो।
  • शौच करने के दौरान जलन के साथ खून का आना।
  • गुदा के आसपास दर्द का होना। और कभी-कभी यह दर्द असहनीय भी हो जाता है।
  • गुदा के आसपास सूजन का आना और सख्त गांठ का बन जाना।
  • अंडरवियर में या टॉयलेट पेपर पर गुदा को पोंछने के बाद घिनौना बलगम का जमा होना।
  • शौच करने में अत्यधिक दर्द का महसूस होना। 
  • बवासीर से पीड़ित मरीज को शौच करने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

महिलाओं में बवासीर के कारण क्या है ?

  • जो लोग गुदा मैथुन करते है उनमें पाइल्स की बीमारी देखी जाती है।
  • डिलीवरी में गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ने की वजह से महिलाओं को बवासीर होने का खतरा हो जाता है। इसलिए कुछ महिलाओं को प्रसव के बाद बवासीर की समस्या होती है।
  • अत्यधिक धूम्रपान और शराब शरीर के लिए हानिकारक होता है इसका ज्यादा सेवन करना बवासीर का कारण बनता है। यह शरीर में और भी बिमारियों को पैदा करने का कारण बनती है।
  • बवासीर की सबसे बड़ी वजह है कब्ज। कब्ज में मल कठोर हो जाता है। जिसकी वजह से मलत्याग करने में जोर लगाना पड़ता है और मस्से बाहर आ जाते है।
  • अधिकतर मोटी महिलाओं में भी पाइल्स होने का जोखिम रहता है। मोटापा भी इसका एक प्रमुख कारण है। मोटापे को कम करने के लिए रोज एक्सरसाइज करे।
  • महिला बवासीर का एक कारण यह भी होता है की जिन महिलाओं का काम लम्बे समय तक खड़े रहने का है उनमें भी यह समस्या पायी जाती है।
  • अक्सर भारी वजन उठाने की वजह से भी बवासीर की समस्या हो जाती है। तो अगर आप भी भारी वजन उठाने का काम करती है तो सावधानी बरते।
  • जो महिलाएं लगातार बैठी रहती है आलस करती है उनमें भी बवासीर से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा रहती है।
  • अधिक तला एवं मसाले युक्त भोजन करने से भी बवासीर की समस्या हो जाती है।
  • भोजन का हमारे शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है, अगर फाइबर युक्त भोजन नहीं किया जाये तो बवासीर की समस्या हो सकती है। इसलिए अपने खाने में फाइबर से युक्त भोजन शामिल करें।
  • गर्भावस्था के समय प्रोजेस्टेरोन हार्मोन में वृद्धि हो जाती है। यह नसों को आराम देने का काम करते है। जिससे नसों में सूजन आ जाती है। इससे प्रेग्नेंट महिला को कब्ज की समस्या हो जाती है और कब्ज की वजह से पाइल्स की समस्या उत्पन्न होती है।

अगर कब्ज की समस्या की वजह से बवासीर की समस्या का आपको सामना करना पड़ रहा है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

बवासीर का इलाज घर पर कैसे किया जा सकता है ?

  • कब्ज से परेशान लोगों को मल को नरम करने के लिए ओटीसी फाइबर पूरक का उपयोग करना चाहिए। साइलियम और मिथाइलसेलुलोज दो सामान्य फाइबर पूरक है इसलिए बवासीर से बचाव के लिए खूब फाइबर का सेवन करें।  
  • इसमें घरेलू उपचार भी आपकी मदद करेंगे, जैसे ;
  • रोज स्नान के दौरान गुदा स्थान को गर्म पानी से साफ करें। सिर्फ पानी से साफ़ करें साबुन का उपयोग ना करें। साबुन से बवासीर बढ़ सकता है।
  • गुदा पर ठंडे सेक का भी उपयोग करें। इससे बवासीर की सूजन कम हो जाएगी। दर्द से मुक्ति पाने के लिए इबुप्रोफेन, एस्पिरिन खा सकते है।
  • पानी खूब पिएं रोज और 10 से 12 ग्लास पानी तो जरूर से पिएं। पानी शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर कर देता है जिससे बीमारियां कम होती है।
  • विशेष रूप से योग और व्यायाम करें और एक जगह पर ज्यादा देर तक बैठे से बचे।
  • अगर दर्द ज्यादा हो रहा है तो प्रतिदिन 10 मिनट के लिए गर्म पानी के टब में बैठे। बाहरी बवासीर से राहत पाने के लिए गर्म पानी की बोतल पर बैठना भी लाभदायक होता है। यदि दर्द ज्यादा ही हो रहा है जो की असहनीय है तो ओवर-द-काउंटर सपोसिटरी का उपयोग करें। यह ऑनलाइन या फिर दुकानों में मिल जाएंगे।
  • वहीं अगर घरेलू उपचार करने पर भी आराम नहीं मिल रहा है तो डॉक्टर से इलाज करवाएं। डॉक्टर रबर बैंड बंधाव से इसका इलाज करते है। इसके अलावा इंजेक्शन थेरेपी या स्क्लेरोथेरेपी से भी इलाज किया जाता है। डॉक्टर एक रसायन को सीधे रक्त वाहिका में इंजेक्ट करते है। जिससे की बवासीर का आकार छोटा हो जाता है।

पंजाब में बवासीर का उपचार अनुभवी डॉक्टरों की मदद से आसानी से किया जा सकता है।

बवासीर के इलाज के लिए बेस्ट सेंटर !

अगर बवासीर की समस्या आपकी काफी बढ़ते जा रहीं है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। इसके अलावा महिलाओं में इस तरह की समस्या क्यों होती है इसके बारे में भी आपको हम उपरोक्त बता चुके है, तो कृपया उपरोक्त्त बातों को ध्यान में रखें अगर बवासीर की समस्या से खुद का बचाव करना चाहती है। 

निष्कर्ष :

महिलाओं में बवासीर की समस्या का होना काफी गंभीर बात है इसलिए इससे बचाव के लिए आपको जरूरी है की जितना जल्दी हो सकें इस समस्या से खुद का बचाव करें और किसी भी तरह की समस्या आने पर डॉक्टर का चयन करें।

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बवासीर को कैसे घरेलु उपायों की मदद से ठीक कर सकते है ?

बवासीर जिसे हेमरॉइड्स के नाम से भी जाना जाता है, ये गुर्दा नहर वाले हिस्से में सूजी हुई नसें होती है। अपनी सामान्य अवस्था में, वे मल के मार्ग को नियंत्रित करने के लिए आरामदायक गद्दे की तरह काम करती है। बवासीर की समस्या का सामना महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ज्यादा करना पड़ता है। और इस समस्या को लेकर पुरुष वर्ग काफी परेशान भी रहते है क्युकी इसकी वजह से उन्हें काफी एलोपैथिक दवाइयों का सेवन करना पड़ता है। पर आज के लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे की आप कैसे घरेलु उपचार की मदद से खुद का बचाव आसानी से कर सकते है ;

बवासीर होने के कारण क्या है ? 

  • बवासीर के कारणों का पता लगाना थोड़ा मुश्किल है, क्युकि इसका कोई स्पष्ट कारण सामने प्रस्तुत नहीं है। लेकिन कई महान विशेषज्ञों का कहना है कि बवासीर होने का कारण आपके खान-पान से जुड़ा होता है। अगर आप गरिष्ठ आहार लेते है, चावल की पीठी खाते है, तीखे और तेल युक्त पदार्थ का सेवन करते है, मांस, कफ पैदा करने वाले आहार और पेट में कब्ज एवं जलन पैदा करने वाले खाद्य का सेवन करते है, तो आपको बवासीर होने का खतरा हमेशा बना रहता है।  
  • इसके अलावा और भी कई भौतिक कारण है जो बवासीर के लिए जिम्मेदार माने जाते है। जैसे की गुदा क्षेत्र पर दबाव का बनना या लगातार एक ही जगह लंबे समय तक बैठे या खड़े रहना। 
  • वहीं बवासीर को पूर्ण रूप से सही करने के लिए आपको अपने खान-पान में बहुत ज्यादा सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए।

बवासीर किसी न किसी आंतरिक समस्या के कारण होता है, इसलिए जरूरी है की अपनी समस्या के बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

बवासीर के प्रकार क्या है ?

बवासीर मुख्यतः दो प्रकार के होते है, और इन प्रकारों के आधार पर आप जान सकते है की किस तरह के बवासीर का खतरा सबसे ज्यादा होता है ;

  • खूनी बवासीर :

इस प्रकार के बवासीर में गुदा मार्ग में मस्से आ जाते है जो रक्त और म्यूक्स से भरे होते है। मल त्याग करते समय इनसे खून टपकता है। और कई बार जब मस्से बाहर आ जाते है तो इन्हें दबाने के बावजूद भी यह अंदर नहीं जाते है। जिससे व्यक्ति की परेशानी और बढ़ जाती है।

  • बादी बवासीर :

यह पूरी तरह से दर्द का स्रोत माना जाता है, इस प्रकार के बवासीर में मरीज को बार-बार खुजली और जलन की समस्या महसूस होती है। कब्ज होने पर या अन्य पेट संबंधी समस्या होने पर यह कष्टदायक हो जाते है, और चलने-फिरने या उठने बैठने में पीड़ा का सामना करना पड़ता है।

बवासीर के दौरान दिखने वाले लक्षण किस तरह के होते है ?

  • गुदा वाले हिस्से में खुजली की समस्या का सामना करना। 
  • गुदा वाले हिस्से में दर्द, खासकर लंबे समय तक बैठे रहने पर। 
  • आपके गुदा वाले हिस्से के पास एक या ज़्यादा सख्त, कोमल गांठ का निकलना। 
  • आपके मलाशय से खून का रिसना। यह शौच के बाद मल, टॉयलेट पेपर या टॉयलेट बाउल में चमकीले लाल खून के धब्बों का दिखाई देना। 
  • मल त्याग करते समय दर्द और परेशानी का बढ़ना।

बवासीर के लक्षण दिखने पर आपको पंजाब में बवासीर का उपचार करवा लेना चाहिए। 

बवासीर के लिए कौन-से घरेलु उपचार है सहायक ?

सिट्ज बाथ: 

गर्म पानी से नहाना, बवासीर के कारण होने वाली जलन को शांत करता है। वहीं बवासीर में आपको सिटज़ बाथ इस्तेमाल करना चाहिए। क्युकि सिट्ज़ बाथ एक ऐसी विधि है, जिसमें एक छोटे प्लास्टिक के टब का उपयोग किया जाता है जो टॉयलेट सीट पर फिट हो जाता है ताकि आप प्रभावित हिस्से को बस उसमें डुबो सकें। इस पानी में बीटाडीन का घोल या डॉक्टर द्वारा सुझाए गए अन्य एंटीसेप्टिक घोल का उपयोग किया जा सकता है। 

आइस पैक को लगाना: 

एक बार में कम से कम 15 मिनट तक सूजन से राहत पाने के लिए गुदा वाले हिस्से पर आइस पैक या कोल्ड कंप्रेस लगाएं। बड़े, दर्द करने वाले बवासीर के लिए ये कोल्ड कंप्रेस दर्द से निपटने का एक बेहद असरदार उपाय है।

नारियल का तेल: 

नारियल के तेल में मज़बूत एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते है जो त्वचा लाल होने और सूजन को कम कर सकते है। इसमें एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण होते है, जो बवासीर के कारण होने वाली परेशानी को कम करने में मदद कर सकते है। इसमें एंटीबैक्टीरियल (जीवाणु को मारने वाले) गुण भी होते है, जो बवासीर के लक्षणों को कम करने में मदद करते है।

व्यायाम: 

बवासीर के लक्षणों को असरदार तरीके से प्रबंधित करने के लिए घर पर व्यायाम करना एक शानदार उपाय हो सकता है। नियमित पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज़ करना बवासीर के लिए एक बेहतरीन उपाय है। अपनी पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियों को मज़बूत करने से, बिना ज़्यादा दबाव डाले अपनी आंत को खाली करने में आपकी मदद मिल सकती है।

तनाव प्रबंधन करना और अच्छी नींद लेना: 

आराम करने और तनाव को असरदार तरीके से प्रबंधित करने के लिए एक कड़ा प्रयास करने से आंतों को अच्छी आदतें अपनाने में मदद मिलती है। रात में भरपूर नींद लेने से भी पाचन स्वास्थ्य अच्छा बनाए रखने में मदद मिलती है। ऐसा होने पर, आँतों से मल भी आसानी से होकर जा पाता है।

हाइड्रेशन: 

भरपूर पानी और फलों के रस जैसे अन्य स्वस्थ तरल पीने से आपकी आंत कम शुष्क होती है। जब आपका शरीर अच्छी तरह से हाइड्रेटेड होता है, तो आपका पाचन स्वास्थ्य बेहतर होने लगता है, जिससे आपको मल त्याग के दौरान दबाव कम डालना पड़ता है।

ज़्यादा फाइबर वालें आहार: 

भरपूर मात्रा में अघुलनशील और साथ ही घुलनशील फाइबर वाला संतुलित आहार लेने से आपको नियमित रूप से मलत्याग करने में मदद मिलेगी। अघुलनशील फाइबर आपके मल का वज़न बढ़ाते है, जिससे आपको मल त्यागने के दौरान ज़ोर कम लगाना पड़ता है। फाइबर को आंतों को स्वस्थ रखने में मदद करने के लिए भी जाना जाता है।

लहसुन का उपयोग :

  • लहसुन में पाए जाने वाले एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण बवासीर के चलते होने वाले दर्द को और सूजन को कम करते है। इसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है और इसे दो तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर बवासीर गुदा मार्ग के बाहर है तो आप लहसुन की चार कलियों को कूटकर एक गिलास पानी में मिलाएं, अब इस पानी को आप गैस पर तब तक उबालें जब तक पानी का रंग पूरी तरह से बदल न जाए। 
  • फिर अब आप एक सूती कपड़े को इस पानी में भिगो दें और उस कपड़े को अपने मस्से वाले स्थान पर 15 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें, ऐसा दिन में आप दो बार कर सकते है।
  • वहीं अगर बवासीर गुदा मार्ग के भीतर या गुदा मार्ग में ही है, तो आपको लहसुन की कुछ कलियों से ज्यूस निकालना है और उस ज्यूस को गुदा मार्ग के भीतर सोने से पहले डालना है। ऐसा करने से दर्द और सूजन काफी हद तक कम हो जाते है।

बवासीर के इलाज के लिए बेस्ट सेंटर !

आप अगर चाहते है की आपको बवासीर का इलाज मिल सके तो इसके लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। पर साथ ही आपको क्यों इस सेंटर का चयन करना चाहिए, इसके बारे में जानना भी जरूरी है, जैसे ;

अनुभवी डॉक्टर :

जी हां इस सेंटर में मरीजों का इलाज अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा किया जाता है, जिससे मरीज को अपनी समस्या का समाधान भी आसानी से मिल जाता है। 

आधुनिक उपकरण का चयन करना :

इस सेंटर में मरीजों की जाँच या फिर उनके इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण बिलकुल सही और सुचारु रूप से कार्य करते है। 

दवाई में छूट का मिलना :

जी हां, अगर आप इस सेंटर से अपना इलाज करवाते है, तो आपको 30 प्रतिशत तक की छूट भी मिलती है अपने इलाज को लेकर। 

निष्कर्ष :

बवासीर का इलाज करने के लिए कई घरेलू इलाज मौजूद है। वहीं मरीज बिना किसी हिचकिचाहट के इनका इस्तेमाल कर सकते है, लेकिन इस्तेमाल करने से पहले उन्हें अपने डॉक्टर या वैद्य से इस बारे में अवश्य परामर्श लेना चाहिए। क्युकी अपने मन मुताबिक किसी भी घरेलू उपाय का इस्तेमाल करना खतरनाक साबित हो सकता है।

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पुरुषों में बवासीर के क्या है – लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के तरीके ?

बवासीर जिसे पाइल्स भी कहा जाता है, जोकि गुदा या नीचे मलाशय में सूजी हुई नसें होती है, जो असुविधा और दर्द का कारण बन सकती है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में बवासीर होने की संभावना अधिक होती है, विशेष रूप से 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में। तो आज के लेख में जानेंगे की बवासीर की समस्या से हम कैसे खुद का बचाव कर सकते है, इसके लक्षण क्या है, किन कारणों से ये समस्या होती है और कैसे इससे खुद का बचाव कर सकते है ;

पुरुषों में बवासीर की समस्या क्या है ?

  • पाइल्स, जिसे बवासीर के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जो गुदा और निचले मलाशय में नसों को प्रभावित करते है। वे मल त्याग के दौरान असुविधा, दर्द और रक्तस्राव का कारण बन सकते है। पुरुषों में पाइल्स एक आम स्थिति है, जो खासकर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में पाई जाती है।
  • वहीं समय पर अगर इसका इलाज न किया गया तो हालात और बिगड़ सकते है और प्रभावित हिस्से से खून भी बह सकता है। आंतरिक और बाहरी दो प्रकार के बवासीर होते है, जो पुरुषों को प्रभावित कर सकते है।
  • आंतरिक बवासीर जो मलाशय के अंदर होता है और बिना दर्द के रक्तस्राव को उत्पन्न करता है। वे मल त्याग के दौरान जुड़े गुर्दे से बाहर निकल सकते है और असुविधा या जलन पैदा कर सकते है।
  • दूसरी ओर बाहरी बवासीर, गुदा के बाहर विकसित होते है और गंभीर दर्द, खुजली और परेशानी पैदा कर सकते है। वे मल त्याग के दौरान रक्तस्राव भी कर सकते है।
  • एक आदमी के लिए एक ही समय में आंतरिक और बाहरी दोनों बवासीर होना भी संभव है। यदि आप बवासीर के किसी भी लक्षण का अनुभव करते है, तो चिकित्सकीय ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि विभिन्न उपचार विकल्पों के साथ उनका प्रभावी ढंग से इलाज किया जाना जरूरी है।

पुरुषों में बवासीर के कारण क्या है ?

पुरुषों में पाइल्स की समस्या होने का कोई सटीक कारण बताना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन गुदा में मौजूद रक्त वाहिकाओं और ऊतकों के ऊपर बढ़ते दबाव से बवसीर होने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं इसके कुछ निम्निलिखित कारण है जिसके कारण बवासीर की समस्या उत्पन्न होती है :

  • यदि आपके द्वारा कम फाइबर वाले आहार का सेवन किया जाता है, तो इससे ये समस्या उत्पन्न होती है, क्युकी फाइबर का सीमित सेवन आपके मल को सख्त बना देते है, जिससे मल त्याग के दौरान अधिक तनाव की समस्या उत्पन्न होती है। इससे मलाशय और गुर्दे की नसों पर दबाव बढ़ जाता है।
  • पुरुषों में बवासीर के सबसे सामान्य कारणों में से एक कारण ये भी है की मल त्याग के दौरान बहुत अधिक जोर लगाना है। इसकी संभावना तब ज़्यादा होती है जब कब्ज या दस्त हो।
  • जो पुरुष लंबे समय तक बैठे रहते है, जैसे ट्रक ड्राइवर या ऑफिस वर्कर, उनमें बवासीर होने की संभावना अधिक होती है। लंबे समय तक बैठने से गुदा क्षेत्र में नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे उनमें सूजन आ जाती है।
  • जो पुरुष नियमित रूप से भारी सामान उठाते है, उन्हें भी बवासीर होने का खतरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सामान उठाने के कारण गुर्दे की नसों में सूजन आ सकती है।
  • पुरुषों की उम्र बढ़ने के साथ बवासीर अधिक आम हो जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि गुदा क्षेत्र में ऊतक उम्र के साथ कमजोर हो जाते है, जिससे उनमें सूजन होने की संभावना हो जाती है।

अगर आप बवासीर की समस्या से बहुत परेशान है, तो पंजाब में बवासीर का उपचार मिलना आसान है, इसलिए इसका इलाज यहाँ से जरूर करवाए।

बवासीर में पुरुषों को किस तरह के खाने की चीजों का सेवन करना चाहिए !

  • उच्च फाइबर वाले खाद्य प्रदार्थो का सेवन पुरुषों को बवासीर में करना चाहिए, क्युकि इस तरह का भोजन मल को नरम करने और कब्ज को कम करने में मददगार साबित होता है, जो बवासीर को बढ़ा सकता है। इन खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, मेवे, बीज और चोकर शामिल है।
  • अगर आप बवासीर की समस्या को कम करना चाहते है, तो इसके लिए विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए, विटामिन-सी वाले खाद्य प्रदार्थ जैसे – खट्टे फल, शिमला मिर्च और ब्रोकली, अपने आहार में शामिल करने के लिए अच्छे विकल्प है।
  • भोजन में पौधों के यौगिक फ्लेवोनोइड्स होते है, जो सूजन को कम कर सकते है और बवासीर के लक्षणों को कम कर सकते है। खट्टे फल, जामुन और डार्क चॉकलेट ऐसे खाद्य पदार्थों के उदाहरण है।
  • बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए आपको अपने आहार में दही को शामिल करना चाहिए। इसमें अच्छे बैक्टीरिया होते है, जो आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते है और मल त्याग को नियंत्रित कर सकते है, अंततः कब्ज और बवासीर के लक्षणों के विकास की संभावना को कम कर सकते है।  
  • अगर आप आंत, फेफड़े या पेट संबंधित समस्या से छुटकारा पाना चाहते है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

पुरुषों में बवासीर का पता किससे लगाया जा सकता है ?

  • डिजिटल रेक्टल एग्जामिनेशन, की मदद से पुरुष बवासीर का पता लगाना। 
  • एनोस्कोपी, की मदद से बवासीर के ग्रेड की जांच की जाती है।
  • कोलोनोस्कोपी, की मदद से डॉक्टर आपके संपूर्ण आंत की जाँच करते है, जिससे बवासीर की समस्या का पता लगाया जा सकता है।
  • बवासीर की समस्या होने पर मलाशय के निचले हिस्से की जांच को ‘सिग्मायोडोस्कोपी’ की मदद से आसानी से किया जा सकता है, जिससे बवासीर का पता आसानी से लगाया जा सकता है।

 

पुरुषों में बवासीर के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

  • बवासीर में गुदा और मलाशय की नसों में सूजन के कारण मल त्यागते समय तेज दर्द का होना।
  • सूजन वाली नसों की उपस्थिति के कारण गुदा क्षेत्र में खुजली या जलन की समस्या का उत्पन्न होना।
  • बवासीर में सूजी हुई नसों के फटने से मल त्याग के दौरान या बाद में रक्तस्राव का होना।
  • पाइल्स में नसों के बाहर निकलने के कारण गुदा के आसपास गांठ या सूजन हो सकती है।
  • बवासीर आपके अंदर अधूरे मल त्याग की भावना पैदा कर सकते है, जो मल के सामान्य मार्ग को बाधित करता है।
  • गुर्दे और मलाशय में सूजी हुई नसों पर दबाव पड़ने पर बैठने में असुविधा का सामना करना।

बवासीर की समस्या होने पर किस तरह से खुद का बचाव करें ? 

  • स्वस्थ और फाइबर से भरपूर भोजन मल त्याग को नियंत्रित करने और कब्ज को रोकने में मदद करते है, जो गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव डाल सकता है, जिससे बवासीर का निर्माण होता है।
  • आहार और व्यायाम के माध्यम से स्वस्थ वजन बनाए रखने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव कम करने और बवासीर के विकास के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • नियमित व्यायाम भी कब्ज को रोकने और रक्त प्रवाह में सुधार करने में मदद कर सकता है, जिससे बवासीर के खतरे को कम किया जा सकता है।
  • मल त्याग के दौरान जोर लगाने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे बवासीर हो सकता है। इसे रोकने के लिए, समय निकालना महत्वपूर्ण है और बाथरूम का उपयोग करते समय कृपया जल्दबाजी न करें।
  • भारी सामान उठाने से जितना हो सकें बचें, क्युकि भारी सामान आपके गुर्दे और मलाशय की नसों पर दबाव डाल सकते है, जिससे बवासीर की समस्या उत्पन्न होती है। 

पुरुषों में बवासीर का इलाज कैसे किया जाता है ?

बवासीर का शुरू में पता लगने पर इसका इलाज आप कुछ रोकथाम करके कर सकते है, लेकिन जब इसकी स्थिति गंभीर हो जाए तो इसके लिए आपको सर्जरी का सहारा लेना पड़ सकता है, जैसे ;

हेमोराहाइडेक्टोमी : 

यह आपके अंदर उत्पन्न आंतरिक या बाहरी बवासीर को हटा देता है, जो आगे बढ़ गया है।

स्टेपल्ड हेमोराहाइडेक्टोमी : 

एक स्टेपलिंग उपकरण आंतरिक बवासीर को गुदा में वापस खींचता है या उन्हें पूरी तरह से हटा देता है।

पाइल्स के लिए लेजर सर्जरी : 

एक सर्जन बवासीर में रक्त की आपूर्ति को काटने के लिए लेजर का उपयोग करते है, जिससे बवासीर सिकुड़ जाती है। और व्यक्ति को बवासीर की समस्या से निजात आसानी से मिल जाता है।

ध्यान रखें :

बवासीर की समस्या पुरुषों में काफी गंभीर समस्या है, इसलिए इससे बचाव करना बहुत जरूरी है। वहीं इसकी स्थिति गंभीर होने पर आपको सर्जरी का सहारा लेना चाहिए और आप चाहें तो इस सर्जरी को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है। 

निष्कर्ष :

पुरुषों में बवासीर की समस्या एक गंभीर बीमारियों में से एक है, जो उनके जीवन शैली पर काफी गहरा गलत छाप छोड़ती है। बवासीर की समस्या से बचाव करना बहुत जरूरी है, इसलिए आप इस समस्या से बचाव के लिए किसी बेहतरीन हॉस्पिटल, सेंटर या डॉक्टर का चयन करें जो आपको आपकी समस्या से आसानी से छुटकारा दिला सकें।

 

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पेट में जलन और सूजन की समस्या को नज़रअन्दाज़ करना जानिए कितना खतरनाक हो सकता है !

गैस्ट्राइटिस आजकल एक काफ़ी आम प्रॉब्लम बनती जा रही है, वहीं लोग इसे महज़ एसिडिटी समझकर इसे नज़रअंदाज़ करते है, और जब दिक्कत बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो इसको जल्दी से ठीक नहीं किया जा सकता है, जिससे लोगों की दिक्कतें और बढ़ जाती है। पर आज के लेख के माध्यम से हम जानेगे की हम कैसे पेट में ही रहें जलन और सूजन की समस्या से खुद का बचाव कर सकते है ;

पेट में गैस्ट्राइटिस या सूजन की समस्या क्या है ?

  • गैस्ट्राइटिस का मतलब होता है पेट में सूजन का आना है और ये समस्या का एक ऐसा समूह है जिसमें पेट के अंदर की परत कमज़ोर होने लगती है। 
  • वहीं परत कमज़ोर होने के कारण पेट में जो एसिड और अन्य पदार्थ बनते है, उनसे पेट में सूजन और जलन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। 
  • इसके अलावा ये आजकल एक बहुत आम समस्या है, तो वहीं अगर गैस्ट्राइटिस का सही समय पर इलाज न किया जाए तो इससे आगे जाकर पेट में छाले, ज़ख्म या कुछ मामलों में कैंसर की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

पेट में किसी भी तरह की समस्या होने पर आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

पेट में जलन और सूजन के क्या कारण है ?

  • सबसे पहला कारण है, खाने-पीने का ध्यान न रखना, जिसकी वजह से आपको पेट से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • वहीं बहुत ज्यादा तली या तीखी चीज़ें खाने से आपको गैस्ट्राइटिस की शिकायत हो सकती है। और तो और जंक फ़ूड से तो ये दिक्कत और बढ़ जाती है। 
  • फिजिकल एक्टिविटी की कमी और स्ट्रेस भी कारण हो सकते है, पेट में जलन और सूजन के कारण।  
  • बहुत ज्यादा स्मोकिंग, और शराब पीने से गैस्ट्राइटिस की समस्या हो सकती है। 
  • बहुत ज़्यादा पेन किलर या एंटीबायोटिक खाने से भी पेट में सूजन हो सकती है। 
  • कुछ बीमारियों के कारण भी ऐसा होता है, जैसे – HIV और ऑटोइम्यून गैस्ट्राइटिस, वहीं आपको बता दें की इस बीमारी में शरीर पेट के अंदर की परत को ख़ुद नुकसान पहुंचाने लगता है।

पेट की अंधरुनि समस्या को जानने के लिए आपको डॉक्टर के सलाह पर लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से इसकी जाँच को करवाना चाहिए।

पेट में जलन और सूजन के दौरान कौन-से लक्षण नज़र आते है ?

  • इसके लक्षणों में आपको पेट के ऊपरी हिस्से या लेफ्ट साइड में दर्द हो सकता है।
  • ये दर्द पीछे कमर में भी आपको महसूस हो सकता है। 
  • पेट में जलन का महसूस होना। 
  • पेट का फूला हुआ या टाइट महसूस होना। 
  • पेट का भरा-भरा लगना। 
  • बिना ज्यादा खाए डकार का आना। 
  • उल्टी जैसा महसूस होना। 
  • एसिड ऊपर आने के कारण सीने में जलन का महसूस होना। 
  • भूख में कमी का आना।  
  • अगर पेट में अल्सर (छाले) या कैंसर हो गया है तो काफ़ी ज़्यादा दर्द आपको महसूस हो सकता है। 
  • भूख का न लगना और वज़न का बहुत ज़्यादा कम हो जाना। 
  • उल्टी की समस्या और मल में खून का आना।

पेट में जलन की समस्या से कैसे करें खुद का बचाव ?

  • अगर आप पेट में जलन की समस्या से खुद का बचाव करना चाहते तो इससे बचाव के लिए आपको खाना-खाने के बाद तुरंत नहीं लेटना चाहिए, क्युकी खाने के बाद तुरंत लेटने से एसिड रिफ्लक्स जैसी पाचन संबंधी दिक्कतें सामने आने लगती है। 
  • खाना-खाने के बाद कम से कम आपको 1000 स्टैप्स चलना चाहिए, ऐसा करने से डाइजेस्टिव सिस्टम, ब्लड शुगर लेवल और आपकी सेहत अच्छी रहती है।

पेट में जलन और सूजन की समस्या का इलाज क्या है ?

  • गैस्ट्राइटिस से निपटने के लिए कई दवाइयां उपलब्ध है, ये दवाइयां एसिड को बनाना बंद कर देती है, इससे पेट की परत काफ़ी हद तक ठीक हो जाती है। 
  • हिस्टामिन ब्लॉकर भी एसिड को कम करने में काफी मदद करते है, लिक्विड एंटासिड अंदर के बने एसिड को न्यूट्रलाइज करते है, इसके बाद भी समस्या ठीक नहीं होती तो डॉक्टर से सलाह आपको लेनी चाहिए। 
  • गैस्ट्राइटिस का इलाज अगर सही समय पर न किया जाए तो अल्सर और कैंसर तक की समस्या का आपको सामना करना पड़ सकता है। इसलिए अगर उपरोक्त बताए गए लक्षण आपको महसूस हो रहे है, तो केवल एसिडिटी की दवा न लें, बल्कि डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं। 

सुझाव :

पेट की समस्या को नजरअंदाज करना मतलब मौत के मुँह में खेलने के सामान है। इसलिए जरूरी है की अगर आप पेट से जुडी किसी भी तरह की समस्या का सामना कर रहें, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। 

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प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया के लक्षण दिखने पर कैसे करें इसका इलाज ?

प्रेगनेंसी एक ऐसा स्टेज है, महिलाओं की ज़िन्दगी में की इस अवस्था में उन्हे अपना खास ध्यान रखना चाहिए, लेकिन कई बार ध्यान रखने के बाद भी अगर महिलाओं को पीलिया की परेशानी हो जाए तो ऐसे में वो कैसे खुद का बचाव कर सकती है इसके बारे में आज के लेख में चर्चा करेंगे

प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया की समस्या क्या है ?

  • प्रेगनेंसी में पीलिया लिवर की समस्या की वजह से होता है। प्रेगनेंसी में लिवर संबंधी विकार बेहद ही कम होता है, लेकिन इसके होने की वजह से बच्चे और मां दोनों को कई अन्य रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। 
  • प्रेगनेंसी में लगभग तीन प्रतिशत महिलाओं को ये समस्या गंभीर रूप से परेशान कर सकती है। पीलिया होने पर महिलाओं की आंखों का रंग पीला हो जाता है। दरअसल जब लिवर में बिलीरुबिन बनने की प्रक्रिया बढ़ जाती है, तो ये रोग हो जाता है। 
  • प्रेगनेंसी में महिलाओं को पित्त की पथरी, कोलेस्टेसिस, हाई बीपी होने की वजह से लिवर का कार्य प्रभावित हो जाता है, इसकी वजह से भी पीलिया होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • अगर आप भी प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया की समस्या का सामना कर रहीं है तो इससे बचाव के लिए आपको गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया में कौन-से लक्षण नज़र आते है ?

  • जी मिचलाना व उल्टी आने की समस्या का सामना करना। 
  • पीले रंग के पेशाब का आना। 
  • आंखों के रंग का पीला होना। 
  • कमजोरी महसूस होना। 
  • बुखार की समस्या का सामन करना। 
  • वहीं इसके अन्य लक्षणों में ;
  • वजन का तेजी से कम होना।   
  • भूख का न लगना। 
  • पेट में दर्द का होना। 
  • हल्के रंग के मल का आना।  
  • कब्ज की शिकायत होना, आदि।  
  • अगर आपमें पीलिया के ऐसे लक्षण नज़र आ रहें है, तो डिलीवरी के दौरान पेनलेस नार्मल डिलीवरी होने की संभावना बहुत कम रह जाती है। इसलिए पीलिया के लक्षण नज़र आने पर जल्द डॉक्टर का चयन करें।

प्रेगनेंसी के दौरान पीलिया का इलाज कैसे किया जाता है ?   

  • प्रेगनेंसी में एनीमिया की वजह से होने वाले पीलिया का इलाज आयरन युक्त आहार से किया जा सकता है। इसके अलावा पीलिया के मुख्य कारण के आधार पर ही उसका इलाज किया जाता है। इसकी पहचान होने के बाद डॉक्टर इलाज शुरु कर देते है।  
  • हेपेटाइटिस की वजह से होने वाले पीलिया में डॉक्टर मरीज को स्टेरॉयड की दवाएं देते है, ताकि मरीज़ को जल्दी फ़ायदा मिल सकें।  
  • कई बार कुछ दवाओं के इस्तेमाल से भी व्यक्ति को पीलिया हो सकती है, ऐसे में डॉक्टर सबसे पहले उन दवाओं के सेवन को बंद कर देते है।  
  • पीलिया के संक्रमण से जुड़ी समस्याओं के लिए डॉक्टर कई बार एंटी बायोटिक्स दवाएं देते है। जिसका किसी भी तरह का कोई नुकसान व्यक्ति को नहीं होता है।  

इसके अलावा आप चाहें तो गर्भवती महिला के पीलिया का इलाज लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है।

पीलिया में गर्भवती महिलाएं किन खाने की चीजों का रखें खास ध्यान !

  • गन्ने का जूस पिएं ताकि पीलिया की समस्या से बचाव हो सकें। 
  • ऐसी अवस्था में पीलिया होने पर जितना हो सके व्यक्ति को अपने शरीर को हाइड्रेट रखना चाहिए। 
  • जितना हो सकें पीलिया के मरीज को छाछ या फिर दही का सेवन करना चाहिए।
  • मूली के रस को पिएं। 
  • नीम की पत्तियों का सेवन करें आदि।

पीलिया होने पर गर्भवती महिलाएं किन चीजों का करें परहेज ?

  • डॉक्टर के द्वारा हमेशा पीलिया के मरीजों को मसालेदार चीजों का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, जंक फूड से भी परहेज करना चाहिए। क्युकि इनमें मसालों का अधिक इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसान भी साबित होता है, खास करके गर्भवती महिलाओं के लिए।
  • फिर चाय और कॉफी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। 
  • पीलिया के मरीजों को अचार का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा नमक से भी परहेज करना चाहिए। तो वहीं मीट, चिकन और अंडे का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न !

गर्भावस्था के दौरान पीलिया होने के क्या कारण है ?

प्रेग्नेंसी के दौरान इंफ़ेक्शन या वायरल हेपेटाइटिस, पीलिया की सबसे आम वजह में शामिल है। हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी, या ई इन सभी वायरस से वायरल हेपेटाइटिस जैसा गंभीर इंफ़ेक्शन हो सकता है। 

अगर गर्भवती महिला को पीलिया हो जाए तो क्या होगा ?

प्रेगनेंसी के दौरान लिवर से जुड़ी कई बीमारियों का जोखिम रहता है। जिसमें पीलिया मतली उल्टी और पेट में दर्द शामिल है। गर्भावस्था के दौरान लिवर से जुड़ी बीमारी न सिर्फ मां बल्कि बच्चे की जान के लिए भी ख़तरनाक साबित हो सकती है।

कौन-से फल पीलिया को कम करते है ?

गाजर और चुकंदर का जूस पीलिया के मरीजों के लिए रामबाण इलाज है। अगर नियमित रूप से इन दोनों फलों का सेवन इनके द्वारा किया जाता है, तो पीलिया की समस्या से ये छुटकारा पा सकते है।  

क्या पीलिया में खरबूजा खा सकते है ?

बिलकुल खा सकते है, इसके अलावा पपीता भी पीलिया से राहत देने में मदद करते है।

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गर्भवती महिलाओं को टाइप 1 डायबिटीज में किस तरह की सावधानियों को बरतना चाहिए !

गर्भावस्था एक ऐसा पड़ाव है हर महिला की ज़िन्दगी में की इस पड़ाव से तो हर महिला होकर गुजरती ही है, पर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है, तो वहीं गर्भावस्था में कई महिलाएं टाइप 1 डायबिटीज की समस्या का भी सामना करती है, तो चलिए जानते है की इस तरह की समस्या से कैसे वो खुद का बचाव कर सकती है, और साथ ही किन बातों का उन्हे इस दौरान खास ध्यान रखना चाहिए;

महिलाओं में डायबिटीज की समस्या क्या है ?

  • डायबिटीज लंबे समय तक चलने वाली एक गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है। वहीं इस बीमारी को ठीक करना मुश्किल है, लेकिन इसके लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं महिलाओं में डायबिटीज का असर प्रेग्‍नेंसी पर भी देखने को मिलता है। 
  • इसके अलावा अगर माँ डायबिटीज की बीमारी से परेशान है, तो इसका नुकसान उनके बच्‍चे को भी उठाना पड़ सकता है।

गर्भवती महिलाओं में टाइप 1 डायबिटीज के क्या लक्षणा नज़र आते है ?

  • असामान्य प्यास का लगना। 
  • लगातार पेशाब का आना। 
  • पेशाब में शुगर की मात्रा का बढ़ना। 
  • थकान या उल्टी की समस्या। 
  • धुंधली दृष्टि की समस्या।
  • योनि में संक्रमण का भय। 
  • मूत्राशय और त्वचा में संक्रमण की समस्या का सामना करना।

अगर आपमें भी गर्भावस्था के दौरान टाइप 1 डायबिटीज के इस तरह के लक्षण नज़र आए या किसी भी तरह की समस्या नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट के संपर्क में आना चाहिए। 

प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज से ग्रस्त महिलाएं किन बातों का रखें ध्यान !

  • अगर ​डायबिटीज से ग्रस्त महिलाओं की डिलीवरी होती है, तो उन्हे जन्‍म के समय बच्चे के अधिक वजन के होने पर खास ध्यान रखना चाहिए। 
  • टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्‍त मांओं के बच्‍चों में जन्‍मजात बीमारियां या विकार होने का खतरा ज्‍यादा रहता है। हार्ट डिजीज, हाथ-पैरों में विकलांगता और रीढ़ की हड्डी में कोई विकार हो सकता है। इसके अतिरिक्‍त शिशु के विकास और नसों से संबंधित कई समस्‍या भी आ सकती है।
  • डायबिटीक मां के शिशु में हाइपोग्लाइसीमिया या लो ब्‍लड ग्‍लूकोज भी हो सकता है। जन्‍म से पहले ब्‍लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए प्रयास करने की वजह से ऐसा हो सकता है। इसमें बच्‍चे का ब्‍लड शुगर तेजी से घटता है और ब्रेन डैमेज होने जैसी जटिलताएं आ सकती है।
  • डायबिटीज से ग्रस्‍त मां के नवजात शिशु में ‘रेस्पिरेट्री डिस्‍ट्रस सिंड्रोम’ (सांस लेने में तकलीफ का सामना करना) की समस्या हो सकती है। डायबिटीज भ्रूण के फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है और फेफड़ों के विकास को धीमा कर सकता है। इससे शिशु को रेस्पिरेट्री डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम हो सकता है। 

अगर आप अपनी गर्भावस्था की अवधि पूरी करने के बाद पेनलेस नार्मल डिलीवरी की चाहत रखती है तो इसके लिए आपको डायबिटीज के शुरुआती लक्षणों को जानकर इसका इलाज जरूर करवाना चाहिए।

टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त महिलाएं कैसे रखें अपने खाने का खास ध्यान ?

  • हर दिन लगातार मात्रा में भोजन करने और निर्देशानुसार इंसुलिन लेने से रक्त शर्करा के स्तर में काफी सुधार हो सकता है। यह मधुमेह से संबंधित जटिलताओं, जैसे कोरोनरी धमनी रोग, गुर्दे और नेत्र रोग, और तंत्रिका क्षति के जोखिम को भी कम कर सकता है। 
  • इसके अलावा, ये उपाय शरीर के वजन प्रबंधन पर भी प्रभाव डालते है।
  • हाई शुगर और तली भुनी चीजों का सेवन करने से आपको बचना चाहिए। 
  • प्रयाप्त मात्रा में आपको सब्जियों और फलों का सेवन करना चाहिए।

सुझाव :

टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। और इस दौरान उन्हें हर तरह की समस्या से बचाव के लिए डॉक्टर के संपर्क में आना चाहिए।

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गर्भवती महिला के लिए कैसे जरूरी है डबल मार्कर टेस्ट (Double Marker Test), जानिए क्या है इसकी प्रक्रिया, परिणाम व लागत

गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे के बेहतर भविष्य और स्वास्थ्य को देखते हुए कई प्रकार के मेडिकल टेस्ट का सहारा लिया जाता है। वहीं इन मेडिकल टेस्ट को दो वर्गों में बांटा जाता है। पहले वर्ग में वो सभी टेस्ट आते है, जो जच्चे और बच्चे की सेहत के लिहाज से बेहद जरूरी माने गए है। 

वहीं, दूसरे वर्ग में उन टेस्ट को शामिल किया गया है, जिन्हें डॉक्टर भविष्य में आने वाली किसी परेशानी की आशंका के मद्देनजर कराने की सलाह देते है और डबल मार्कर टेस्ट भी इसी लिए ही करवाए जाते है, तो आज के लेख में भी हम इस टेस्ट के बारे में तमाम जानकारी आपके साथ सांझी करेंगे ;

क्या है डबल मार्कर टेस्ट (Double Marker Test) ?

  • डबल मार्कर टेस्ट की बात करें, तो यह गर्भधारण की पहली तिमाही पर किया जाने वाला रक्त परीक्षण है। खास यह है कि डबल मार्कर टेस्ट नॉन-इनवेसिव स्क्रीनिंग यानि की बिना किसी कट मार्क के किया जाने वाला परीक्षण है। 
  • वहीं इस टेस्ट के जरिए डाउनग्रेड सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम और पटाउ सिंड्रोम जैसे क्रोमोसोम (गुणसूत्र) का पता लगाया जाता है। क्रोमोसोम में किसी प्रकार की कमी होने पर भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है या फिर जन्म के बाद भविष्य में शिशु को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • वहीं कई सारे जीन के समावेश को क्रोमोसोम यानी गुणसूत्र के नाम से भी जाना जाता है।

यदि आप डबल मार्कर टेस्ट करवाने के बारे में और विस्तार से जानना चाहते है तो इसके लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

किन्हे होती है डबल मार्कर टेस्ट की जरूरत ?

  • गर्भवती महिलाएं जो एक विशेष प्रकार के खतरे के अंतर्गत आती है, उन्हें पहले ट्राइमेस्टर में प्रेग्नेंसी डबल मार्कर टेस्ट से होकर गुजरना पड़ सकता है। 
  • इसके अलावा जिन महिलाओं में निम्न बातें नज़र आए उसके लिए उन्हें डबल मार्कर टेस्ट को जरूर कराना चाहिए, जैसे –
  • अगर कोई महिला 35 वर्ष या इससे अधिक उम्र के बाद गर्भवती हुई है, तो उन्हे इस टेस्ट का चयन करना चाहिए। 
  • पिछला शिशु जो गुणसूत्रीय समस्या के साथ पैदा हुआ हो। 
  • अनुवांशिक दोष भी आपको इस टेस्ट को करवाने की तरफ लें जा सकते है।  
  • टाइप-1 डायबिटीज से संबंधित इंसुलिन की समस्या का सामना कर रहीं महिलाएं को भी इस टेस्ट का चयन करना चाहिए।
  • बहुत सी महिलाओं के मन में ये बात बैठी हुई है की डबल मार्कर टेस्ट में काफी पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है जिसके चलते वो इस टेस्ट को करवाने से मना कर देती है लेकिन आपको बता दें की ये टेस्ट पेनलेस टेस्ट की कैटेगरी में शामिल है।

डबल मार्कर टेस्ट की प्रक्रिया क्या है ?

  • यह एक ऐसा ब्लड टेस्ट है, जिसे गर्भावस्था के दौरान होने वाले अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाता है। 
  • इस टेस्ट की सहायता से चिकित्सक गर्भवती महिला के खून की जांच करके उसमें उपस्थित हार्मोन और प्रोटीन की जांच करते है। 
  • बता दें कि इस जांच में जिस हार्मोन की जांच की जाती है, उसे फ्री बीटा एचसीजी के नाम से संबोधित किया जाता है। 
  • वहीं, जांच में शामिल किए जाने वाले प्रोटीन की बात की जाए, तो इस टेस्ट के दौरान ग्लाइकोप्रोटीन और पीएपीपी-ए (प्रेगनेंसी एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन) का परीक्षण किया जाता है।

डबल मार्कर टेस्ट की लागत क्या है ?

  • इसकी शुरुआती लागत की बात करें तो ये 2,500 से लेकर 3,500 के आस-पास आती है। 
  • वहीं इसकी लागत इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप कहाँ रहते है और कौन-से हॉस्पिटल का चयन करते है।

डबल मार्कर टेस्ट के क्या परिणाम है ?

  • डबल मार्कर टेस्ट के परिणाम भविष्य में होने वाले डाउन सिंड्रोम से संबंधित गंभीर जोखिमों को दर्शाते है। इन्हें कुछ इस तरह से समझा जा सकता है, जैसे अगर की गई जांच में फ्री बीटा एचसीजी की मात्रा सामान्य सीमा से अधिक पाई जाती है, तो इसे पॉजिटिव मार्कर माना जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि गर्भवती में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका अधिक हैं। 
  • वहीं, दूसरी स्थिति में पीएपीपी-ए की मात्रा सामान्य से कम मापी जाती है, तो यह स्थिति भी डाउन सिंड्रोम के लिए पॉजिटिव परिणाम के तौर पर देखी जाती है।

सुझाव :

आप चाहे तो डबल मार्कर टेस्ट की जाँच को लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से भी करवा सकते है। 

निष्कर्ष :

डबल मार्कर टेस्ट को करवाना हर गर्भवती महिला के लिए बहुत जरूरी है, वहीं इस जाँच को डॉक्टर के सलाह पर ही करवाए, और खुद की मर्ज़ी से ऐसी अवस्था में इस जाँच का चयन आपको नहीं करना चाहिए।

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एंडोस्कोपी कराने के क्या है – कारण, तरीके, फायदे और नुकसान ?

एंडोस्कोपी आपके शरीर के आंतरिक अंगों की अच्छे से जाँच करके आपकी बीमारी के बारे में पता करती है और साथ ही आपके परेशानी का हल भी करती है पर क्या है आप जानते है की एंडोस्कोपी के फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान भी है। इसके अलावा एंडोस्कोपी को किन कारणों से करवाया जाता है, इसके बारे में चर्चा करेंगे ;

क्या है एंडोस्कोपी ?

  • एंडोस्कोपी जिसका खासतौर पर अर्थ होता है चिकित्सीय कारण और एंडोस्कोप की मदद से शरीर के अन्दर देखना। एंडोस्कोप एक ऐसा उपकरण है, जिसका प्रयोग शरीर के खोखले अंग अथवा छिद्रों के अन्दर जाँच करने के लिए किया जाता है।
  • शरीर के आंतरिक अंगों और उतकों को विस्तार से देखने के लिए शरीर में एक लंबा और पतला ट्यूब सीधे प्रवेश कराया जाता है, इस प्रक्रिया को एंडोस्कोपी कहते है। इस प्रक्रिया से शरीर में चीरा लगाए बिना शरीर के अंगों में उत्पन्न हो रही बीमारियों और समस्याओं का पता लगाया जाता है। 
  • एंडोस्कोपी एक पतला और लचीला ट्यूब होता है जिसके ऊपर कैमरा लगा होता है। 
  • इस उपकरण को मरीज के मुंह और गले से गुजारकर भोजन नली में प्रवेश कराया जाता है। 

अगर आपको अपने शरीर के आंतरिक अंगों की जाँच को करवाना है तो इसके लिए आप लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन भी कर सकते है।

एंडोस्कोपी का चयन क्यों किया जाता है ?

  • पेट दर्द के कारणों का पता लगाने के लिए।
  • अल्सर, गैस्ट्रिटिस और कुछ निगलने में कठिनाई होने पर।
  • पाचन तंत्र में ब्लीडिंग होने पर।
  • गंभीर रूप से डायरिया और कब्ज होने पर।
  • कोलन में पॉलिप्स या उभार हो जाने पर।
  • पेट के अल्सर, पित्ताशय की पथरी और ट्यूमर को निकालने के लिए।
  • पैन्क्रियाटिटिस और पेट में सूजन होने पर।
  • अल्सरेटिव कोलाइटिस के निदान के लिए।
  • योनि से असामान्य रूप से ब्लीडिंग होने पर।
  • पेशाब में खून आने पर।
  • पाचन तंत्र से जुड़ी बीमारियां होने पर।
  • हार्निया के निदान के लिए।
  • संक्रमण होने पर।

एंडोस्कोपी किन तरीकों से किया जाता है !

  • डॉक्टर उस मॉनीटर पर मरीज के सांस की गति, ब्लड प्रेशर और ह्रदय गति की निगरानी करते है। इसके बाद डॉक्टर मरीज को दवा देते है। 
  • यह दवा बांह की नस में दी जाती है जो एंडोस्कोपी के दौरान मरीज को दर्द से राहत दिलवाती है।
  • इसके बाद डॉक्टर मरीज के मुंह में एनेस्थेटिक स्प्रे छिड़कते हैं। यह दवा गले को सुन्न कर देती है और इससे लंबे समय तक एक लचीला ट्यूब या एंडोस्कोप गले में प्रवेश कराये रखने में मदद मिलती है। 
  • मुंह को खुला रखने के लिए मरीज के मुंह में एक प्लास्टिक माउथ गार्ड पहना दिया जाता है। इसके बाद एंडोस्कोप को गले के अंदर डाला जाता है और डॉक्टर मरीज को गले के नीचे एंडोस्कोप को खिसकाने के लिए कहते है। इस दौरान मरीज को गले में हल्का दबाव महसूस होता है लेकिन उसे दर्द नहीं होता है।

यदि आपको बड़ी आंत में किसी तरह की परेशानी है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी का चयन करना चाहिए।

एंडोस्कोपी के क्या फायदे है ?

  • एंडोस्कोपी कराने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अन्य टेस्ट के बजाय यह कम आक्रामक होता है।
  • यह टेस्ट कराने के लिए कम से कम तैयारी की जरूरत पड़ती है और समय भी कम लगता है।
  • हालांकि इस एंडोस्कोपी टेस्ट कराने के अंतिम रात के बाद कुछ खाना मना होता है जिससे पेट खाली रहता है और रोग का पता सही तरीके से चल पाता है।

एंडोस्कोपी टेस्ट के नुकसान क्या है ?

  • एंडोस्कोपी के बाद मरीज के शरीर में ऐंठन और शरीर में सूजन हो सकती है।
  • एनेस्थेसिया दिए जाने के कारण मरीज का गला कई घंटों तक सुन्न रह सकता है।
  • परीक्षण वाले स्थान पर संक्रमण होने का खतरा बना रहता है।
  • जिस जगह पर एंडोस्कोपी की जाती है वहां लगातार दर्द बना रह सकता है।
  • एंडोस्कोपी कराने के बाद मरीज को आंतरिक ब्लीडिंग भी हो सकती है।
  • मरीज के मल का रंग अधिक गहरा हो सकता है आदि।

एंडोस्कोपी की जाँच के लिए बेस्ट सेंटर !

आप चाहे तो एंडोस्कोपी की जाँच लुधियाना गैस्ट्रो एवं गयने सेंटर से भी करवा सकते है।

निष्कर्ष :

शरीर की आंतरिक समस्या के बारे में जानने के लिए आप समय-समय पर एंडोस्कोपी की जाँच को करवाते रहें ताकि आपको किसी भी तरह की समस्या का सामना न करने पड़े।

 

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पेट, या लीवर रोग में कैसे सहायक होंगे गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉक्टर !

पेट, या लीवर रोग की समस्या का सामना करना कोई बड़ी बात नहीं है, इस प्रदूषण भरे वातावरण में और लोगों के द्वारा बरती गई लापरवाही की वजह से। वहीं पेट या लिवर संबंधी समस्या क्या है, और इसके लिए मरीज़ को किस तरह के हॉस्पिटल या सेंटर का चयन करना चाहिए और पेट संबंधी समस्या को ठीक करने में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी का क्या सहयोग है इसके बारे में हम निम्न में चर्चा करेंगे ;

कौन होते है गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉक्टर ?

  • गैस्ट्रोएंटरोलॉजी चिकित्सा का एक क्षेत्र है जो पाचन तंत्र, या जठरांत्र संबंधी मार्ग और यकृत के स्वास्थ्य पर केंद्रित है। गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम से लेकर हेपेटाइटिस-सी तक हर चीज का इलाज कर सकते है।
  • गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट भी एक डॉक्टर होते है। इनमें पेट, आंतों, कोलोन, अग्न्याशय, अन्नप्रणाली, पित्ताशय, पित्त नलिकाओं और लिवर के विकार शामिल होते है। यद्यपि गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल अंगों से संबंधित अधिकांश समस्याओं का इलाज करने के लिए उपयुक्त माने जाते है।

यदि आपको पाचन तंत्र, या जठरांत्र संबंधी समस्याओं का इलाज करवाना है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉक्टर का काम क्या-क्या है ?

  • डॉक्टर चाहे किसी भी बीमारी से जुड़े हुए क्यों न हो उनका पहला काम अपने मरीजों से मिलना और उनका आकलन करना होता है।
  • कोलोन और पाचन तंत्र के भीतर देखने के लिए कॉलोनोस्कोपी और एंडोस्कोपी करना भी उनका एक काम है।
  • एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके परीक्षण करना।
  • सर्जरी के लिए मरीजों को रेफर करना और सर्जरी के बाद उनका इलाज जारी रखना।
  • इरिटेबल आंत्र सिंड्रोम, कोलाइटिस, गैस्ट्रिटिस, बवासीर, क्रोहन रोग, लैक्टोज इनटोलरेंस, हार्टबर्न, गैस्ट्रोएसोफेजियल रिफ्लक्स डिसीज, अल्सर, सीलिएक डिसीज, पित्ताशय की बीमारी और कुछ कैंसर जैसी स्थितियों के लिए रोगियों का इलाज इनके द्वारा किया जाता है।
  • चिकित्सा कर्मचारियों के साथ बैठक करना और व्यावसायिक निर्णयों में योगदान देना आदि सब इनके कार्यो में शामिल है।

अगर पेट से जुडी आंतरिक समस्याओं से आप भी ग्रस्त है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपनी जाँच को करवाना चाहिए।

पेट या लिवर संबंधी रोग कौन-से है ?

  • पेट में संबंधित रोग की बात करें तो इसमें सिरदर्द, बुखार, एसिडिटी, बदहजमी, चक्कर आना व उल्टी-दस्त आदि से लेकर पीलिया हेपेटाइटस, फैटी लीवर आदि शामिल है। 
  • लिवर संबंधित रोगों की बात करें तो इसमें हेपेटाइटिस-ए, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी शामिल है। 
  • इसके अलावा लंबे समय तक शराबबंदी के कारण लिवर का ख़राब होना, जिगर में वसा का निर्माण, पहले चरण के स्क्लेरोजिंग चोलैंगाइटिस, लिवर ट्यूमर, पित्त की नली का कैंसर आदि लिवर रोग है।

पेट और लिवर रोग के इलाज के लिए बेस्ट सेंटर !

  • अगर आप पेट या लिवर संबंधित समस्याओं का सामना कर रहें है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैट्रो एवं गयने सेंटर के अनुभवी डॉक्टर, “डॉ कार्तिक गोयल” से जरूर मुलाकात करनी चाहिए। और लिवर के गंभीर रोग से निजात पाने के लिए अपने डॉक्टर को अपनी जाँच की रिपोर्ट जरूर दिखाए ताकि वो आपके बीमारी को जानकर आपका इलाज अच्छे से कर सकें।
  • वहीं खास बात इस सेंटर की ये है, की यहाँ पर मरीज का इलाज आधुनिक उपकरणों की मदद से किया जाता है, और इन उपकरणों से इलाज अनुभवी डॉक्टर ही करते है।

सुझाव :

  • यदि आप पेट या लिवर संबंधी समस्या का सामना कर रहें है तो इसके लिए आपको उपरोक्त सेंटर का चयन करना चाहिए और साथ ही आपको अपने खान-पान का भी खास ध्यान रखना चाहिए, जैसे पेट से जुड़े विकार में आपको तली, भुनी, ज्यादा चटपटी चीजे और खास कर बाहर की चीजों को खाने से परहेज करना चाहिए। 
  • वहीं लिवर के विकार में आपको शराब या अन्य ऐसी नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे आपका लिवर ख़राब हो।
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डिलीवरी के बाद कैसी डाइट लेने से जच्चे और बच्चे में आएगी तंदरुस्ती ?

अकसर डिलीवरी के बाद हर महिला का एक सवाल होता है की वो ऐसा क्या खाएं की उनके साथ उनका बच्चा भी सेहतमंद रहें, तो अगर आपका भी इसी से मिलता जुलता सवाल है तो इस सवाल का जवाब हम आज के लेख में प्रस्तुत करेंगे ;

डिलीवरी के बाद कैसे रखें खुद का और बच्चे का ध्यान ?

  • डिलीवरी के कुछ दिन बाद आपको अपने बच्चे को बदलते मौसम से बचाना चाहिए और बच्चा अगर ठंड के मौसम में हुआ है, तो उसको अच्छे से गर्म कपडे डाले और गर्मी के रुत में हुए बच्चे को लू से बचाकर रखना चाहिए। 
  • बच्चे को बेवक़्त न नहलाए बल्कि बच्चा जबतक एक महीने का न हो जाए, तब तक उसे नेहलाने की बजाए हल्के गर्म पानी में सूती के कपडे को भिगोकर उसका मुँह हाथ अच्छे से साफ़ करें और खुद भी बेवक़्त नहाने से बचें। 

डिलीवरी के बाद जच्चे और बच्चे को और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसके बारे में जानने के लिए आप गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन जरूर करें।

डिलीवरी के बाद जच्चे की डाइट में किन चीजों को करें शामिल ?

  • डिलीवरी के बाद एक महिला या बच्चे की माँ को अपनी डाइट में लहसुन, हरी पत्तेदार सब्जियां, दलिया जरूर खाना चाहिए। क्युकि इससे ब्रेस्‍ट मिल्‍क ज्‍यादा बनने में सहायता मिलती है।
  • आप दिन में एक बार हरी पत्तेदार सब्‍जी और एक बार दलिया खाएं। इसके अलावा गाजर, ब्राउन राइस, तिल और तुलसी भी लें और हल्‍का भोजन करें। भारी भोजन करने से बचें और दूध, दही और सब्जियां सही मात्रा में लें।
  • डिलीवरी के बाद आपको अंडे का भी सेवन करना चाहिए, क्युकी अंडे में बहुत ज्यादा प्रोटीन होता है जो आपके मांसपेशियों में हो रहें दर्द को कम करने में काफी सहायक माना जाता है। वहीं अगर आप शाकाहारी है तो ऐसे में आप दूध से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल भी कर सकती है। 
  • मेथीदाना भी डिलीवरी के बाद इस्तेमाल करने से काफी फ़ायदा मिलता है, क्युकि इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते है, जो आपके ब्रेस्ट मिल्क को बढ़ाते है और आपकी सेहत का भी काफी अच्छे से ध्यान रखते है, अगर आप चाहे तो मेथी के लड्डू बनाकर डिलीवरी के बाद कुछ दिन तक खाएं इससे आपको फ़ायदा मिलेगा। 
  • बादाम, ओट्स, घी, खजूर का सेवन भी आप कर सकती है, जिससे डिलीवरी के बाद आई आपके अंदर कमजोरी को ठीक किया जा सकता है।

डिलीवरी के बाद महिलाओं को क्या नहीं खाना चाहिए ?

  • वैसे पेनलेस नार्मल डिलीवरी होने पर महिलाओं को खानपान में ज्‍यादा परहेज बरतने की जरूरत तो नहीं होती है। लेकिन फिर भी आपको मसालेदार चीजें कम खाना है और साथ ही कब्‍ज एवं खांसी पैदा करने वाले पदार्थों से भी दूर रहें।
  • वहीं अगर आपकी डिलीवरी सी-सेक्‍शन से हुई है, तो डॉक्‍टर आपको शुरुआती दिनों में हल्‍का भोजन करने की सलाह दे सकती है। 
  • और आप इस समय कब्‍ज और खांसी करने वाली चीजें तो बिलकुल न खाएं। ऐसा कोई काम न करें जिससे आंखों पर प्रेशर पड़ता हो। अगर आपको सिजेरियन डिलीवरी के बाद कब्‍ज है या आपको अक्‍सर कब्‍ज रहती है, तो पपीता और दूध लें। 
  • खट्टी चीजें न खाएं और हेल्‍दी चीजों को भी सीमित मात्रा में ही खाएं। 
  • कोई भी चीज न तो बहुत ज्‍यादा खाएं और न ही बहुत कम।

सुझाव :

  • यदि आप और विस्तार से जानना चाहती है की आपको डिलीवरी के बाद और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए तो इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर के अनुभवी डॉक्टर के सम्पर्क में आ सकते है। 

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है की आपको पता चल गया होगा की डिलीवरी के बाद आपको कैसे अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, तो अगर आप खुद के और अपने बच्चे के अच्छी सेहत के लिए चिंतित है तो इसके लिए उपरोक्त बातों का अच्छे से ध्यान रखें।

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यदि नार्मल डिलीवरी की है चाहत तो इन बातों का रखें ध्यान !

गर्भावस्था एक ऐसी स्टेज होती है जिसमे महिलाएं अपने संतान की प्राप्ति के लिए काफी खुश होती है। इसके अलावा डिलीवरी को लेकर महिलाओं के द्वारा बहुत से सवाल पूछे जाते है, जिनमे से सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न नार्मल डिलीवरी को लेकर होता है, इसलिए आज के लेख में हम गर्भावस्था के दौरान संतान की प्राप्ति नार्मल डिलीवरी से कैसे कर सकते है इसके बारे में बात करेंगे ;

क्या है नार्मल डिलीवरी ?

  • पेनलेस नार्मल डिलीवरी एक वह प्रक्रिया है जिसमें शिशु का जन्म प्राकृतिक तरीके से महिला के वजाइना से होता है। इसमें किसी तरह की कोई चीरफाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है। प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह की परेशानी न होने पर महिला को नार्मल डिलीवरी होती है। यह शिशु के जन्म का सबसे आम तरीका है।
  • नाॅर्मल डिलीवरी के दौरान आपकी ग्रीवा पतली होकर खुलती है। आपका गर्भाशय संकुचित होता है, ताकि शिशु प्रसव नलिका में नीचे खिसक सके और योनि के जरिये जन्म ले सके।
  • शिशु का जन्म नाॅर्मल डिलीवरी से ही कराया जाता है, मगर यदि आपकी गर्भावस्था या प्रसव के दौरान जटिलताएं हो तो सिजेरियन डिलीवरी करवाने की जरुरत पड़ सकती है।

नार्मल डिलीवरी करवाने के लिए किन बातों का ध्यान रखें ?

  • डिलीवरी से पहले अच्छी देखभाल रखें और ऐसी डाॅक्टर का चयन करें, जिनके साथ आप सहज महसूस कर सके।
  • पौष्टिक (हरी सब्जियां, अंडा, जूस) आहार खाने पर खास ध्यान रखें और गैर सेहतमंद भोजनों से बचें साथ ही कैफीन के सेवन को कम करें।
  • गर्भावस्था में कोशिश करें कि आपका वजन स्वस्थ रहें।
  • सक्रिय एवं क्रियाशील रहें, उचित व्यायाम से अपनी ताकत बढ़ाएं। श्रोणि क्षेत्र की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए व्यायाम करें।
  • सुनिश्चित करें कि आप पर्याप्त नींद लें और आराम करें। आप योग स्ट्रेचिंग और गहन श्वसन व्यायाम भी आजमा सकती है।
  • डिलीवरी के समय परिवार के साथ जरूर रहें। 
  • तनाव से दूर रहें। 
  • उठते और बैठते समय आपको खास ध्यान रखना चाहिए। 
  • किसी भी तरह की बात का चिंतन न करें।
  • शरीर के निचले हिस्से की मालिश करें। 
  • पेरेनियल मालिश करें और इसमें आप बादाम या नारियल का तेल ले सकती है मालिश करने के लिए। 

नार्मल डिलीवरी के लिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इसके बारे में जानने के लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

नार्मल डिलीवरी के लिए किन चीजों का सेवन न करें !

कच्चे अंडे, कच्चा पपीता, कच्ची अंकुरित चीजे, शराब, सिगरेट, कैफीन, मछली, कच्चा मांस, घर पर बनी आइसक्रीम, जंक फ़ूड, फ़ास्ट फ़ूड, ज्यादा तेल व मसालेदार आदि चीजों से आपको परहेज करना चाहिए।

नार्मल डिलीवरी होने के संकेत क्या नज़र आते है ! 

  • इसमें आपको पहला संकेत तो ये नज़र आएगा जैसे आपका बच्चा नीचे की तरफ़ आ रहा हो। 
  • बार-बार बाथरूम जाने की ज़रूरत भी आपको महसूस हो सकती है। 
  • जैसे ही आपका बच्चा नीचे की तरफ आएगा वैसे ही आपको लोअर बैक में पैन होना शुरू हो जाएगा। 
  • बच्चे के सिर की वजह से वेजाइनल पर प्रेशर पड़ने लगता है और इससे म्यूकस प्लग निकल जाता है, जिससे भारी मात्रा में वेजाइनल डिस्चार्ज होने लगता है, ऐसा होने का मतलब बिल्कुल साफ़ है की आपके डिलीवरी का समय आ चुका है, वहीं इस डिस्चार्ज की बात करें तो यह पिंक, सफ़ेद या फिर थोड़ा-सा खून से सना हो सकता है। 
  • वॉटर ब्रेक होना मतलब लेबर आने और नार्मल डिलीवरी होने का साइन है, वॉटर बैग का ब्रेक होना मतलब एम्नियोटिक झिल्ली का फट जाना, जिसका मतलब साफ़ है कि अब लेबर शुरू हो चुका है। और नार्मल डिलीवरी किसी भी समय हो सकती है।

नार्मल डिलीवरी के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर !

यदि आप नार्मल डिलीवरी करवाना चाहते है, तो इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से जरूर संपर्क करें।

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पेट में सुई जैसी चुभन किन बीमारियों का है संकेत !

पेट में सुई की तरह दर्द को अक्सर लोगों के द्वारा नजरअंदाज किया जाता है। लेकिन, असल में ये शरीर से जुड़ी कई समस्याओं का संकेत भी हो सकता है। दरअसल, पेट में सुई की तरह दर्द इस बात का भी संकेत है कि पेट की आंतरिक परत में सबकुछ ठीक नहीं है। इसके अलावा ये किडनी और लिवर जैसे अंगों के सही नहीं होने का भी संकेत हो सकता है। तो, आइए जानते है पेट में सुई की तरह दर्द क्यों होता है ;

पेट में सुई जैसी चुभन के क्या कारण है ?

  • पेट में सुई जैसी चुभन भोजन न पचने की वजह से होता है। इसके अलावा पाचन शक्ति कमजोर होने पर पेट में चुभन और दर्द की परेशानी हो सकती है। दरअसल, जब पाचन कमजोर होता है, तो खाने को पचाने में काफी ज्यादा परेशानी खड़ी करता है। ऐसे में व्यक्ति को एसिडिटी, कब्ज, पेट में दर्द, जलन इत्यादि की समस्या होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
  • वायरल संक्रमण की वजह से भी पेट में चुभन की परेशानी हो सकती है। पेट में वायरल इंफेक्शन के कारण चुभन के साथ-साथ जी मिचलाना, पेट में दर्द, डायरिया, सिरदर्द इत्यादि परेशानी होती है। इस तरह के लक्षणों के साथ-साथ मरीजों को शारीरिक रूप से थकान, कमजोरी इत्यादि भी महसूस हो सकती है। 
  • मांसपेशियों में खिंचाव भी पेट में चुभन का कारण है। वहीं इसके कारण पेट में दर्द की परेशानी भी देखी गई है। इस स्थिति में मरीज को पेट की मालिश करने से काफी आराम महसूस होता है। पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आने पर मरीज को हिलने-डुलने में भी परेशानी हो सकती है।
  • अपेंडिक्स (आंतों में इन्फेक्शन, कब्ज, पेट में पलने वाले खराब बैक्टीरिया) की समस्या पेट के दाएं निचले हिस्से में होती है। ऐसे में अगर आपके पेट के दाहिने हिस्से में चुभन की परेशानी हो रही है, तो यह अपेंडिक्स की ओर इशारा कर सकता है। इस स्थिति को इग्नोर करने के बजाय तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। ताकि गंभीर स्थितियों से बचा जा सके।
  • पेट में चुभन की शिकायत गॉल ब्लैडर में पथरी की वजह से भी हो सकती है। इस स्थिति में मरीज को पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द और चुभन की परेशानी महसूस होती है। कभी-कभी यह दर्द काफी तेजी से बढ़ता है। इस परेशानी से ग्रसित मरीजो को पेट में चुभन के साथ-साथ उल्टी, पीलिया और काफी ज्यादा कमजोरी का अनुभव भी होता है। 

किन कारणों से पेट में सुई जैसी चुभन हो रहीं है इसके बारे में जानने के लिए लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करें।

क्या है पेट में दर्द की समस्या ?

  • पेट में दर्द कई चीजों के कारण हो सकता है, जिनमें अपच, पेट के वायरस, ख़राब खाना, गैस, खाद्य एलर्जी, कब्ज, एंडोमेट्रियोसिस, क्रोहन रोग, सीलिएक रोग, चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम और कुछ दवाएं शामिल है।
  • अगर आपके पेट में भी दर्द की समस्या बनी हुई है तो इससे निजात पाने के लिए आप लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से भी अपनी जाँच करवा सकते है।

पेट की जाँच व इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर !

अगर आप भी पेट में अत्यधिक दर्द और पीड़ा का आभास कर रहें है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। क्युकि कई दफा ऐसा हो जाता है की हमें पेट में दर्द के कारण सर्जरी का सहारा भी लेना पड़ सकता है। 

सारांश :

पेट की समस्या चाहे छोटी हो या बड़ी काफी खतरनाक मानी जाती है, इसलिए जरूरी है की आप अगर इस तरह की समस्या से निजात पाना चाहते है तो इसके लिए समय-समय पर अपने पेट की जाँच को करवाते रहें ताकि आपकी बीमारी ज्यादा न बढ़ सकें। 

वहीं पेट की समस्या आपको गंभीर रोगी बना सकती है इसलिए जरूरी है की पेट की समस्या को कृपया नज़रअंदाज़ न करें।

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आंतों से जुडी बीमारी के संकेतों को जानकर कैसे करें खुद का बचाव

आंत को शरीर में मष्तिष्क के रूप में भी जाना जाता है, वही आंत का हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है क्युकि हमारे द्वारा जो भी खाया जाता है उसे पचाने का काम आंत ही करती है, वही आंतों से जुडी बीमारियां क्या होती है और लक्षणों के माध्यम से कैसे हम अपने आंतों की रक्षा कर सकते ही इसके बारे में आज के लेख में चर्चा करेंगे ;

आंत क्या होते है ?

  • आंत जोकि सामान्यतः दो तरह के होते है, जिसमे पहला प्रकार छोटी आंत का होता है और दूसरा प्रकार बड़ी आंत का होता है। 
  • वही आंत की बात करें तो ये हमारे शरीर में हम जो भी खाते है उन्हें पचाने का काम करती है। 
  • आंत हमारे द्वारा खाए भोजन में से स्‍वस्‍थ और पौष्टिक चीजों को शरीर के अंदर रखती है और विषाक्‍त पदार्थ को बाहर करती है। हलाकि जब आंतों के द्वारा अपना काम ठीक तरह से नहीं किया जाता तो कब्ज समेत कई रोगों का जन्म होने लगता है।
  • आंतों की बात करें तो बड़ी आंत में पानी को अवशोषित किया जाता है जबकि छोटी आंत मिनरल, विटामिन और दूसरे तत्वों का अवशोषण करती है।

आंतों से जुडी बीमारियां कौन-कौन सी होती है ?

  • आंत जोकि सामान्यतः दो तरह के होते है, बड़ी आंत और छोटी आंत,
  • छोटी आंत की बीमारी में शामिल आंतशोथ, कार्बोहाइड्रेट असहिष्णुता, शरीर में आवश्यक एंजाइमों की कमी, नाड़ी और छोटी आंतों की एलर्जी संबंधी बीमारियां, व्हाइपल का रोग और अन्य. अनुचित पोषण या विशिष्ट दवाइयां लेने के कारण, छोटी आंतों में चिपचिपा झिल्ली के अखंडता या जलन के उल्लंघन के कारण उनमें से सभी अपना विकास शुरू करते है। 
  • बड़ी आंत के रोगों में बृहदांत्रशोथ, अल्सर, क्रोहन रोग, डिवर्टक्यूलोसिस और बृहदान्त्र, ट्यूमर और अन्य बीमारियों के अन्य परेशानियां शामिल है।

यदि आप अपनी बड़ी और छोटी आंत के अंदर की बीमारी के बारे में जानना चाहते है तो इसके लिए आप लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपनी जाँच करवाए।

आंतों की खराबी के क्या संकेत है ?

  • एक महीने या इससे ज्यादा समय तक कब्ज का रहना। 
  • मल त्यागते समय पेट और एनस (गुर्दे) में दर्द का होना। 
  • पेट से ब्लोटिंग और भारीपन का महसूस होना। 
  • बैचेनी, पेट में जलन, दर्द और मरोड़ महसूस करना। 
  • हर दूसरे दिन कब्ज की समस्या का होना और पेट के बीच में दर्द का होना। 
  • मल के साथ खून का आना। 
  • तेजी से वजन का घटना। 
  • मुंह और शरीर से दुर्गंध का आना। 
  • भूख में कमी का महसूस करना।

अगर आप आंत या पेट से जुडी किसी भी तरह की समस्या का सामना कर रहें है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

आंतों की बीमारी का इलाज क्या है ?

  • रोजाना व्यायाम करें। 
  • फाइबर युक्त खाद्यपदार्थ का सेवन करें। 
  • पानी की पर्याप्त मात्रा ले और खुद को हाइड्रेट रखें। 
  • विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने की कोशिश करें। 
  • प्रोबायोटिक्स आंतों को स्वास्थ्य रखने में एहम भूमिका निभाते है इसलिए इनकी मात्रा शरीर में बनाए रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा डेयरी उत्पादों का सेवन करें।   
  • आराम करें और खुद का ध्यान रखें। 
  • नियमानुसार कुछ न कुछ खाए लेकिन लगातार नहीं।

आंतों की बीमारी के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर !

आंत में किसी भी तरह की गंभीर बीमारी का होना काफी खतरनाक माना जाता है, क्युकि इससे हमारे शरीर का पाचन क्रिया का सिस्टम जुड़ा होता है इसलिए जरूरी है की इनमे किसी भी तरह की अगर परेशानी आ जाए तो कैसे हम इससे खुद का बचाव कर सकते है वो भी लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर की मदद से।

निष्कर्ष :

आंतों में किसी भी तरह की बीमारी आने पर जल्द डॉक्टर के संपर्क में आए।

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आंतों में गांठ पड़ने के क्या है लक्षण और इन्हे नज़रअंदाज़ करना कैसे पड़ सकता है भारी ?

आंतों में गांठ का पड़ना काफी खतरनाक समस्या मानी जाती है, क्युकी हमारे आंत का ख़राब होना मतलब की हमारा पूरा शरीर ख़राब होने के कगार पर आ जाता है। वहीं आंतो में गांठ की समस्या से कैसे हम खुद का बचाव कर सकते है, और कौन-से लक्षण हमारी मदद करेंगे आंतों की समस्या को जानने में इसके बारे में आज के आर्टिकल में चर्चा करेंगे, तो शुरुआत करते है आर्टिकल की और जानते है आंतों में समस्या के बारे में ; 

क्या है आंतों में गांठ की समस्या ?

  • खराब आंत आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ने का काम करती है और जब आंतों में दिक्कत होने लगे तो आपका संपूर्ण स्वास्थ्य प्रभावित होता है। 
  • वही आंतों में गांठ का पड़ना अपने आप में ही परेशानी वाली बात है और जब ये दिक्कत बढ़ जाती है तो आपका पूरा शरीर खराब होने लगता है। 
  • इसके अलावा आंतों में गांठ की वजह से पेट फूलना, कब्ज, दस्त और पेट में दर्द जैसी परेशानियां आपकी आंतों के बिगड़ने का संकेत है। 
  • हलाकि ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है कि आपकी आंतों में एकदम से ही खराबी आ सकती है, बल्कि जब आपके आंत में खराबी आती है तो ये समय से पहले ही कुछ न कुछ संकेत देने लग जाते है, जिन्हें नजरअंदाज करना आपके लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। 

आपके आंत में गांठ की समस्या है या नहीं इसके बारे में जानने के लिए लुधियाना में कोलोनोस्कोपी की मदद ले।

आंतों में गांठ पड़ने के संकेत क्या है ?

आंतों में गांठ पड़ने के संकेतो को आप निम्न माध्यम से आसानी से जान सकते है, जैसे ;

  • जब आपके आंतों में गांठ की समस्या होती है, तो आपका मन बहुत ज्यादा मीठा खाने का करेगा, और मीठे में ब्रेड या फिर बहुत ज्यादा डेरी प्रोडक्ट खाने का मन भी कर सकता है, इसलिए आपको अगर ज्यादा मीठा खाने का दिल करें तो आप जल्द लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर का चयन करें। 
  • यदि आपका वजन लगातार बढ़ या फिर घट रहा है तो इसे नज़रअंदाज़ न करें, क्युकि वजन का बढ़ना और घटना भी आपके आंतों में समस्या को उत्पन्न कर सकता है। 
  • कहा जाता है की आपकी आंतों और दिमाग के बीच सीधा संबंध होता है और आंतों को ही शरीर का दूसरा मस्तिष्क भी कहा जाता है। वही अगर आप अच्छा महसूस करना चाहते है, तो कुछ अच्छा खाएं लेकिन जब आपका मूड अपनी पसंदीदा चीज को भी खाने का न करे या फिर आपका मूड हमेशा खराब ही रहे तो ये आंतों में गांठ पड़ने का एक संकेत हो सकता है।
  • जब आपके आंतों में खराबी होगी तो आपको सोचने समझने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता वही जब हमारे द्वारा ज्यादा डिप्रेशन या फिर ज्यादा सोचा जाता है तो भी ये समस्या हो सकती है।
  • पेट का सुबह के समय ठीक से साफ़ न होना भी आपमें आंतों में गांठ की समस्या को उत्पन्न कर सकता है। 

तो अगर आपको उपरोक्त में से कोई भी संकेत आपमें नज़र आए तो कृपया इसे नज़रअंदाज़ न करें और समय रहते किसी अनुभवी डॉक्टर का चयन करें।

आंतों में गांठ की समस्या से निजात दिलवाने के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर !

यदि आप भी आंतों में गांठ की समस्या से काफी परेशान है तो इससे निजात पाने के लिए आपको लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। इसके अलावा अगर आप शुरुआती दौर में इस समस्या को जान कर इसका इलाज करवाते है तो आपको किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।

निष्कर्ष :

आंतों में गांठ की समस्या को कृपया नज़रअंदाज़ न करें बल्कि समय रहते इसके लक्षणों को जान कर इसका इलाज करवाने के बारे में जरूर सोचें।

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महिलाओं को अपने शरीर में होने वाले दिक्कतों को क्यों नहीं करना चाहिए नज़रअंदाज़ ?

महिलाएं जो अक्सर घर के काम-काज में इतना व्यस्त हो जाती है की उन्हें कई दफा अपने शरीर में आए बदलाव का भी ध्यान नहीं रह जाता है जिसके चलते उन्हें आगे चल के काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है, तो वहीं कुछ महिलाओं को पता ही नहीं होता की उन्हें किस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा आज के लेख में हम बात करेंगे की कौन-सी समस्याएं महिलाओं के शरीर में उत्पन्न होती है जिन्हे वे अकसर नज़रअंदाज़ कर देती है ;

महिलाओं के शरीर में बीमारियां कौन-सी हो सकती है ?

निम्न में हम कुछ ऐसी महिलाओं की बीमारियां के बारे में बात करेंगे, जिससे वो अक्सर नज़रअंदाज़ रहती है, जैसे-

  • एनीमिया की समस्या। 
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम या पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज की समस्या आम-तौर पर तब होती है, जब कोई महिला गर्भवती होने की कोशिश कर रही होती है, और वही ये एक हार्मोनल इंबैलेंस है, जिसका प्रभाव मेटाबोलिक हेल्थ पर पड़ता है। 
  • मेनोपॉज एक महत्वपूर्ण हार्मोनल चेंज है, जो सभी महिलाओं में होता है, इसमें फीमेल हार्मोन यानी एस्ट्रोजन कम हो जाता है। जिससे दिल की बीमारी के खिलाफ इसकी प्रोटेक्टिव एक्टविटी भी कम हो जाती है। 
  • महिलाओं में हड्डियों का स्वास्थ्य यानी बोन हेल्थ 30 के दशक में बिगड़ना शुरू हो जाता है, इसलिए हड्डियों की मजबूती बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम के सेवन के साथ-साथ एक्सरसाइज करना जरूरी है। वही डेयरी प्रोडक्ट कैल्शियम का सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है, जैसे दूध, दही, पनीर आदि।

अगर आपको अपने शरीर में इस तरह की बीमारियां नज़र आ रहीं है, तो इससे बचाव के लिए आपको बेस्ट गायनोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

कौन-सी दिक्कतों को महिलाएं न करें नज़रअंदाज़ !

  • पीरियड्स के दौरान दर्द का होना, तो कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान बहुत तेज दर्द होता है, इसे डिसमेनोरिया कहा जाता हैं। यदि इस दर्द की वजह से महिलाएं अपना काम नहीं कर पा रही हैं और इससे उनके जीवन में काफी परेशानियां हो रही है, तो उन्हें इसकी जांच करानी चाहिए। वही इलाज शुरू करने से पहले इसके लिए क्लीनिकल जांच और पेल्विक सोनोग्राफी की आवश्यकता होती है। 
  • दूसरी दिक्कत वेजाइनल इंफेक्शन या वेजाइना के मुख के पास की त्वचा में फोड़े होने के कारण हो सकता है, वही यह समस्या कभी-कभी वेजाइनल डिस्चार्ज या खुजली भी हो सकती है। 
  • कई दफा मूत्र रिसाव की परेशानी के कारण महिलाएं काफी शर्मिंदगी महसूस करती है, यही वजह है की, अधिकांश महिलाओं को मूत्र रिसाव के बारे में खुल कर बात करने में कठिनाई होती है। यह आमतौर पर खांसते या छींकते या एक्सरसाइज करते समय होता है।
  • सेक्स के दौरान ब्लीडिंग या तेज दर्द का होना जिसे महिलाओं के द्वारा अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जो बाद में चल कर उनके सेहत पर काफी बुरा प्रभाव डालती है।

यदि महिलाएं इन समस्याओं को ध्यान में रखें तो उन्हें आगे चल कर किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता वही गर्भावस्था के दौरान उनकी पेनलेस नार्मल डिलीवरी भी होती है।

सुझाव :

 इसके अलावा महिलाओं को अपनी समस्या को महिला डॉक्टर के सामने खुल कर बताना चाहिए ताकि उन्हें किसी भी तरह की समस्या का भविष्य में चल कर सामना न करना पड़े।  

निष्कर्ष :

महिलाओं को अपनी समस्या को खुल कर बताने में शर्माना नहीं चाहिए फिर चाहें डॉक्टर महिला हो या पुरुष।

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Abdominal Swelling Hindi

पेट में सूजन के क्या है लक्षण, कारण और घरेलू उपचार ?

पेट जोकि हमारे समस्त पाचन क्रिया के साथ जुड़ा होता है, अगर इसमें किसी भी तरह की समस्या आ जाए तो हमारे पूरे शरीर की कार्य करने की क्षमता अस्त-व्यस्त हो जाती है। इसके अलावा पेट का सूजन व्यक्ति में किस तरह की समस्या को उत्पन्न करता है, और कैसे इसके लक्षणों को जानकर हम घरेलू उपचार की मदद से पेट में सूजन की समस्या से निजात पा सकते है के बारे में आज के आर्टिकल में चर्चा करेंगे ;

पेट की सूजन क्या है ?

  • पेट की सूजन तब होती है जब पेट का क्षेत्र सामान्य से बड़ा होता है। इसे कभी-कभी एक विकृत पेट या फूला हुआ पेट के रूप में भी जाना जाता है। 
  • फूले हुए पेट के कई संभावित कारण होते हैं और यह एक सामान्य घटना है। अधिकांश लोग विभिन्न कारणों से किसी बिंदु पर सूजन का अनुभव करते है। 
  • इसके अलावा पेट सूजने पर ऐसा महसूस होता है कि पेट फैल गया है और खिंच गया है, जो असहज हो सकता है।

अगर आपके पेट में भी सूजन की समस्या बनी रहती है तो इसके लिए आपको लुधियाना में गैस्ट्रो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

पेट में सूजन के कारण क्या है ?

  • वजन का बढ़ना या मोटापे की समस्या। 
  • पेट में द्रव का निर्माण होना। 
  • फाइबर में उच्च खाद्य पदार्थ खाने से आंतों में गैस। 
  • संवेदनशील आंत की बीमारी। 
  • आंशिक आंत्र में रुकावट। 
  • गर्भावस्था के कारण आदि।

पेट में सूजन के लक्षण क्या है ?

  • जी मिचलाने की समस्या का सामना करना। 
  • उल्टी होने की समस्या। 
  • भूख में कमी। 
  • सख्त मल का त्यागना। 
  • मल के कलर में बदलाव का होना। 
  • खून की उल्टी का होना आदि।

पेट में सूजन के लिए डॉक्टर के पास कब जाए ?

  • जब आपको भूख नहीं लगती हो। 
  • पुरानी या लगातार कब्ज, दस्त या उल्टी की समस्या। 
  • लगातार सूजन, गैस या सीने में जलन का होना। 
  • आपके मल में खून या बलगम का आना। 

कौन-से घरेलु उपायों की मदद से पेट के सूजन को कम किया जा सकता है ?

  • टहलें, क्योंकि शारीरिक गतिविधि आंतों को अधिक नियमित रूप से स्थानांतरित करने का कारण बन सकती है, जो अतिरिक्त गैस और मल को बाहर निकालने में मदद कर सकती है।  
  • अदरक में अविश्वसनीय गैस निष्कासन गुण होते हैं और ये अपच को बहुत जल्दी ठीक कर सकते है।
  • वही नींबू के रस के छींटे के साथ एक गिलास गर्म पानी पीने से आपको पेट की सूजन से काफी आसानी से छुटकारा मिल सकता है।
  • स्वास्थ्य पूरक के रूप में सेब के सिरके को सुबह-सुबह एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर दिन में एक बार पिया जा सकता है।
  • दही को हमेशा हाइपरएसिडिटी के लिए रिफ्रेशिंग फूड माना गया है। दही आंत में खराब बैक्टीरिया को प्रतिस्थापित करते है और पाचन में सुधार करते है।

अगर आपको पेट या आंत से जुडी किसी भी तरह की समस्या है तो आप लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपनी जाँच करवाए।

पेट की सूजन से निजात दिलवाने के लिए बेस्ट हॉस्पिटल व सेंटर !

यदि आपके पेट या आंत में किसी भी तरह की सूजन आ गई है तो इससे बचाव के लिए आप लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन जरूर करें। क्युकी पेट की समस्या को अगर शुरुआती दौर में ही ठीक कर लिया जाए तो गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है।

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है आपको पता चल गया होगा की अगर पेट में सूजन आ जाए तो आपको किस तरीके से खुद का बचाव करना चाहिए।

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Health Hindi Pregnancy

हॉस्पिटल की कौन-सी 5 सुविधाएं आपकी डिलीवरी को बनाएगी सफल!

 गर्भवती होने के बाद जो डिलीवरी का समय होता है वो हर महिला व उसके परिवार जनो के लिए खुशी का मंजर होता है, इसलिए इस खुशी में किसी भी तरह की बाधा न आए इसके लिए आपको महिला के डिलीवरी से पहले ही हॉस्पिटल की जाँच पड़ताल कर लेनी चाहिए और जिन डॉक्टरों ने डिलीवरी करनी है उनके अनुभव के बारे में भी जानकारी हासिल करना चाहिए। इसके अलावा आज के लेख में हम बात करेंगे की डिलीवरी के दौरान इमरजेंसी के वक़्त हर हॉस्पिटल में कौन-सी पांच चीजे होना बहुत ही महत्वपूर्ण है ;

डिलीवरी से कितने दिन पहले हॉस्पिटल की जाँच करना शुरू करें !

  • जब आपको पता चल जाए की महिला के डिलीवरी को कुछ हफ्ते या महीने रह गए है तो आपको हॉस्पिटल की जाँच शुरू कर देनी चाहिए, और आपको इस बात का ख़ास ध्यान रखना है की आप उस ही हॉस्पिटल का चयन करें जहा वह सब सुविधाएं मौजूद हो जो डिलीवरी के बाद जच्चे और बच्चे दोनों को जरूरत होती है।

इसके अलावा डिलीवरी के दौरान या उससे पहले महिला को कोई परेशानी आ जाए तो इसके लिए महिला को बेस्ट गायनोलॉजिस्ट के सम्पर्क में आना चाहिए।

डिलीवरी के लिए हॉस्पिटल या नर्सिंग होम में कौन-सी पांच सुविधाएं मौजूद होनी चाहिए ?

  • अगर आप हॉस्पिटल चुनने जा रहें है, तो इसके लिए सबसे पहले आपको ये देखना चाहिए की हॉस्पिटल में “मेड‍िकल सुव‍िधा” है या नहीं, क्युकी हॉस्‍प‍िटल में सही मेड‍िकल सुव‍िधा ही जच्चे और बच्चे दोनों को सुरक्षित रख सकती है। इसके अलावा हॉस्‍प‍िटल में साफ-सफाई का प्रबंधन अच्छे से है या नहीं, इस बात का भी ध्यान रखें।
  • आपको हॉस्‍प‍िटल चुनने से पहले उस जगह की “मेड‍िकल टीम” के बारे में भी जानना चाह‍िए। क्युकि बहुत से ऐसे अस्‍पताल भी है, जहां डॉक्‍टर उतने ट्रेन्‍ड में नहीं होते, ज‍िसके चलते ड‍िलीवरी के समय कई तरह की समस्‍याओं का सामना महिलाओं को करना पड़ता है।
  • आप ज‍िस हॉस्‍प‍िटल का चयन करें उसमें इस बात का खास ध्यान रखे की वहां पर “एनआईसीयू” की फैस‍िल‍िटी जरूर हो, क्‍योंक‍ि जन्‍म के बाद नवजात श‍िशु में कई तरह की समस्‍याएं होती है, जैसे सांस लेने में द‍िक्‍कत, प्रीमैच्‍योर ड‍िलीवरी के कारण लो बर्थ वेट आद‍ि।
  • ड‍िलीवरी की स्‍थि‍त‍ि में “हॉस्‍प‍िटल की लोकेशन” बहुत ही ज्यादा मायने रखती है, क्‍योंक‍ि ड‍िलीवरी के समय क‍िसी भी वक़्त अस्‍पताल जाने की जरूरत पड़ सकती है। तो ऐसे में अगर अस्‍पताल दूर है तो आपको परेशानी हो सकती है। इसलिए जरूरी है की आप अपने आसपास के नर्स‍िंग होम और हॉस्‍प‍िटल के संपर्क में रहें।
  • हॉस्‍प‍िटल का चयन करने से पहले इस बात का ध्यान रखें की उस हॉस्पिटल में “हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी” की सुव‍िधा जरूर होनी चाह‍िए। वही हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी की स्‍थ‍ित‍ि में इमरजेंसी ब्‍लड की जरूरत पड़ सकती है इसके अलावा हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी के वार्ड नॉर्मल वॉर्ड से बिल्कुल अलग होते है।

अगर आप उपरोक्त बातो का ध्यान रखे है, तो आपकी पेनलेस नार्मल डिलीवरी होने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है।

सुझाव :

  • यदि आप डिलीवरी के लिए किसी अच्छे सेंटर या हॉस्पिटल का चयन कर रहें है तो इसके लिए आप लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन कर सकते है। वही आपको बता दे की इस सेंटर में “हाई र‍िस्‍क प्रेगनेंसी वार्ड” और अन्य “वार्ड” भी मौजूद है।
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Gastric Problems Hindi Kartik Goyal

पेट का अच्छे से ध्यान रख कर कैसे बच सकते है, पेट की बीमारियों से ?

एक अच्छी पाचन क्रिया व स्वास्थ्य पेट का होना आज के समय में मुश्किल होता जा रहा है क्युकी लोगों के द्वारा स्वास्थ्य खान-पान पर ध्यान नहीं दिया जाता जिस वजह से उनके पेट में कई सारी परेशानियां जन्म ले लेती है, और पेट की अच्छी तरीके से सफाई न करने की वजह से व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है, इसके अलावा पेट में जमी गंदगी की वजह से किस तरह की बीमारी उत्पन्न होती है और इन बीमारियों से कैसे हम खुद का बचाव कर सकते है इसके बारे में हम आज के लेख में बात करेंगे ;

पेट में जमी गंदगी क्या है ?

  • हमारे द्वारा जो खाना-खाया जाता है, और जब ये खाना हमारे मलाशय से नहीं निकल पाता, तो कोलोन में ही जमा हो जाता है।
  • कोलन, जिसे बड़ी आंत के रूप में भी जाना जाता है, वही कोलन पाचन तंत्र का एक हिस्सा है। 
  • आप जो भोजन खाते है वह पेट और छोटी आंत में अवशोषित होता है। कोलन शरीर के पानी को पुनः प्राप्त करने और बचे हुए भोजन में पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है। 
  • वही यदि आपका पेट ठीक प्रकार से साफ नहीं होता तो, आपको कोलोन इंफेक्शन होने का भी खतरा हो सकता है। 
  • इसके अलावा यह वेस्‍ट मटीरियल यदि लंबे समय तक पेट में पड़ा रहे तो टॉक्‍सिक हो सकता है और आपकी हेल्‍थ को नुकसान पहुंचा सकता है।

आपके पेट में गंदगी के कारण कई तरह की बीमारियां उत्पन्न हुई है या नहीं के बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में कोलोनोस्कोपी से अपनी जाँच जरूर करवानी चाहिए।

कोलन या बड़ी आंत साफ़ रहने के फायदे !

  • आपके समग्र मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आता है।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज में सुधार का आना।
  • पेट के कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।

किन तरीको को अपनाकर पेट की गन्दगी को बाहर निकाला जा सकता है ?

  • एल्कोहल, धूम्रपान और कैफीन लेने से बचें।
  • पानी अधिक मात्रा में पिएं। इससे बॉडी हाइड्रेट रहेगी और पेट भी आसानी से साफ होगा।
  • खाना खाने के बाद वॉक जरूर करें।
  • खाना खाते ही लेटने या बैठने से बचे। 
  • रोज सुबह खाली पेट गुनगुना पानी से गंदगी को साफ किया जा सकता है।
  • सेब का जूस पिए। 
  • लेमन को एक ग्लास हल्के गर्म पानी में गर्म करें और उसमे एक चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस डाल कर पीने से पेट की समस्या से आराम मिलेगा।
  • दही का सेवन करने से भी पाचन की समस्‍या दुरुस्‍त होती है।

उपरोक्त तरीकों को अपनाने के बाद भी अगर आपके पेट में किसी न किसी तरह की परेशानी ने जन्म ले लिया है तो इससे बचाव के लिए आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना का चयन करना चाहिए।

पेट की समस्या से निजात पाने के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या सेंटर ?

  • अगर आपके पेट की सामान्य समस्या ने किसी भयंकर रोग का रूप धारण कर लिया है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना गेस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर का चयन करना चाहिए। क्युकी इस हॉस्पिटल में अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा आधुनिक उपकरणों की मदद से मरीजों का इलाज किया जाता है। 

निष्कर्ष :

पेट व पाचन क्रिया का हमारे शरीर में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्युकि इनके साथ ही हमारे शरीर का पूरा सिस्टम चलता है इसलिए अगर इनमे किसी भी तरह की परेशानी आ जाए तो समय रहते आपको किसी बेहतरीन डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

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Health Hindi Shuchita Batra Weight Loss

डिलीवरी के बाद बढ़े हुए वजन को कैसे किया जा सकता है कम ?

डिलीवरी के बाद कैसे वजन को घटाएं इसको लेकर हर महिला के मन में ये सवाल गूंजता रहता है। इसके अलावा अक्सर आपने देखा होगा की जिन महिलाओं की डिलीवरी होती है उनके पेट का निचला हिस्सा लटक जाता है जिसके कारण उन्हें कई बार काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है

तो वही कुछ महिलाएं इस समस्या से निपटने के लिए मालिश का सहारा लेती है, तो कोई डाइटिंग करके अपने आप को इस समस्या से छुटकारा दिलवाना चाहती है पर अब आपको तरह-तरह के उपायों को करने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको हम कुछ उपाय बताएंगे जिसका सहारा लेकर आप इस समस्या से खुद का बचाव कर सकती है, तो चलते है और वजन कम करने के आर्टिकल की शुरुआत करते है ;

डिलीवरी के बाद बढ़े हुए वजन को कैसे करें कम ?

  • डिलीवरी के बाद महिलाओं को भूख अधिक लगती है जिस वजह से वह कुछ भी खाना शुरू कर देती हैं। ऐसे में जरूरी है कि भूख लगने पर केवल हेल्दी खाने को प्राथमिकता दे साथ ही क्रैश डाइट का सहारा न लें। वही अगर आप हेल्दी चीजे खाते है तो आप दिन की केवल 500 कैलोरी कम करके एक हफ्ते में आधा किलोग्राम वजन कम कर सकती है।
  • आजकल ज्यादातर महिलाएं आत्म निर्भर (सेल्फ डिपेंडेंट) होने की वजह से वह आफिस के काम में व्यस्त रहती हैं। जिस कारण उन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने का समय नहीं मिल पाता, जिसका नतीजा वेट गेन या ब्रेस्ट प्रॉब्लम हो सकती है। इसलिए जो महिलाएं डिलीवरी के बाद अपना वेट कम करना चाहती हैं तो उन्हें अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना चाहिए। 
  • डिलीवरी के बाद आपको ध्यान रखना है कि आप अधिक कैलोरी वाला भोजन न करें। 
  • दिनभर डिलीवरी के बाद महिलाओं को एक्टिव रहना चाहिए और एक्टिव रहने के लिए आप दिनभर में जितना काम खुद से कर पाएं उतना करें। डिलीवरी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है इसलिए आपके शरीर में जितना बल है उसके हिसाब से आप रोजाना 10 से 15 मिनट का वॉक जरूर करें। वही अगर आपको नहीं पता चल रहा है कि वजन कम करने के लिए किन बातो का ध्यान रखना चाहिए तो इसके लिए आपको लुधियाना में गायनेकोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

डिलीवरी के बाद किन बातों का रखें ध्यान ?

  • आमतौर पर डिलीवरी के बाद वजन कम करने के लिए खाने के साथ-साथ हेल्दी स्नैक्स को लेते रहें।
  • दिनभर पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पिएं। 
  • अपने खानपान में एडेड शुगर और सोडा कम ले। 
  • फलों के जूस पीने के बजाय सादे फल (Fruits) खाने की कोशिश करें। 
  • तला-भुना खाने से बिल्कुल परहेज करें। तो वही तला-भुना खाने से अगर आपके पेट में दिक्कत हो जाती है तो इसके लिए आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना से मिलना चाहिए।

सुझाव :

अगर डिलीवरी के बाद आपका वजन भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है तो इससे निजात पाने के लिए आपको उपरोक्त बातों को ध्यान में रखना है और इसके लिए आप लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से सम्पर्क करें और यहाँ के डॉक्टरों के द्वारा बताए गए वजन कम करने वाले नियमों के बारें में अच्छे से जानकारी हासिल करें।  

 

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है कि आपको पता चल गया होगा की कैसे डिलीवरी के बाद आप अपने वजन को कम कर सकते है पर इन उपायों या किसी भी तरह की दवाइयों को प्रयोग में लाने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह ले।

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Endoscopy Gastroenterology Hindi Kartik Goyal

गैस्ट्रिक समस्या से आप भी है परेशान तो आजमाए इसके सहायक प्रक्रिया व उपचार ?

एक मनुष्य का पूरा शरीर उसके सही पाचन क्रिया पर निर्भर करता है। अगर सोचो पेट या पाचन क्रिया ही न सही हो व्यक्ति की, और उसको गैस्ट्रो, अपच जैसी परेशानी का सामना करना पड़ जाए तो। साथ में ही हम आज के इस लेख में इसी के बारे में जानकारी आपके सामने प्रस्तुत करेंगे की कैसे गैस्ट्रो की समस्या उत्पन होने पर हम इससे कैसे निजात पा सकते है।

गैस्ट्रो की समस्या क्या है ?

गैस्ट्रो की समस्या के बारे में हम निम्न में बात करेंगे ;

गैस्ट्रिक की समस्या आपके ऊपरी पेट में जलन या दर्द से शुरू होता है और कभी-कभी अन्नप्रणाली में भी होता है, जो खाने से या तो खराब या बेहतर हो सकता है। मतली, उल्टी, या खाने के बाद आपके पेट के ऊपरी हिस्से में भरा हुआ महसूस होना, पेट में भारीपन या थकान का होना गैस्ट्रिक दर्द के साथ ही शामिल हैं।

गैस्ट्रिक की समस्या पैदा होने पर कौन-सी बीमारी उत्पन होती है ?

इस समस्या के उत्पन होने पर निम्नलिखित समस्या उत्पन हो सकती है, जैसे;

  • कुछ एक्सपर्ट्स का मानना हैं कि गैस की समस्या बनने पर बहुत सी बीमारियां उत्पन होती है जैसे, बवासीर, वजन का कम होना, कब्ज की समस्या का उत्पन होना, डायरिया और उल्टी या मतली जैसी गंभीर समस्याओं के कुछ कारण बन सकते है इस बीमारी के।

गैस्ट्रो के दौरान यदि बीमारियां उत्पन हो जाए, तो आपको गैस्ट्रो डॉक्टर लुधियाना के संपर्क में आना चाहिए।

गैस्ट्रो की समस्या के क्या कारण है ?

इसके कारणों को जान कर आप इस समस्या का अंदाजा लगा सकते है, जैसे ;

  • अगर आप कुछ भी पीते और चबाते है, तो उस समय हवा को साथ में निगल जाना।
  • गैस बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना।
  • आंतों में संक्रमण जैसे पाचन संबंधी समस्याएं।
  • कुछ दवाएं भी गैस्ट्रो के कारण को दर्शाती है।
  • बैक्टीरियल या वायरस संक्रमण।

गैस्ट्रिक समस्याओं की कैसे करे पहचान ?

निम्न तरह के टेस्ट करवा कर ;

  • इमेजिंग परीक्षण करवाना।
  • एंडोस्कोपी से जांच करवाना।
  • रक्त परीक्षण को करवाना।
  • श्वास टेस्ट को करवाना।

यदि आप गैस्ट्रो समस्या की जाँच करवाना चाहती है, वो भी एंडोस्कोपी से तो पंजाब में एंडोस्कोपी की कीमत के बारे में एक बार जरूर से जानना।

उपचार क्या है गैस्ट्रिक बीमारी से निजात पाने का ?

इसका उपचार डॉक्टर मरीज़ के हिसाब से करता है, जिसको हम निम्न में प्रस्तुत कर रहे है ;

  • आंतों की गैस के लिए उपचार की पहली पंक्ति दर्द से राहत देना है। आपका स्वास्थ्य सेवा प्रदाता किसी भी उपचार की पेशकश करने से पहले आपके स्वास्थ्य का विश्लेषण करेगा और आपकी समग्र स्थिति की जांच अच्छे से करेगा।
  • आपका डॉक्टर गैस समस्या के मूल कारण का इलाज करने के लिए एक व्यक्तिगत उपचार योजना तैयार करेगा। जिनमे से पहला है-
  • दवाई का उपयोग करना।
  • अंतर्निहित पाचन समस्या का उपचार करना।
  • जीवनशैली में बदलाव का आना।
  • इसके इलावा यदि उपचार बीच में छोड़ दिया जाए, तो आंतों में गैस की जटिलताओं के कई कारण बन सकते है। इनमें सीने में दर्द, हृदय संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ना और अपच संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ना शामिल है।

आप भी अगर पेट के अंदरूनी समस्या से परेशान है, तो इसका उपचार लुधियाना गैस्ट्रो एन्ड गयने सेंटर से जरूर से शुरू करवाए।

निष्कर्ष :

पेट की समस्या कोई मामूली समस्या नहीं है। इसलिए कोई भी परेशानी यदि आपको उपरोक्त में से आपमें नज़र आए तो कृपया इसे नज़रअंदाज़ न करे।

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Hindi Premature Birth Shuchita Batra

Premature Birth: समय से पहले प्रीमैच्‍योर डिलीवरी को रोकने में जाने कैसे सहायक हैं इसके इलाज

Premature Birth: प्रीमैच्‍योर लेबर डिलीवरी क्या हैं ?

  • कुछ महिलाएं 9 महीने या प्रेग्‍नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले ही बच्‍चे को जन्‍म दे देती हैं। इस स्थिति को प्रीमैच्योर लेबर (Premature Labor) कहा जाता है। यानि की डिलीवरी डेट से 3 हफ्ते पहले प्रसव होने को प्रीमैच्‍योर लेबर कहते हैं।
  • तो वहीं जब बच्चा बहुत जल्दी पैदा होता है, यानि गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले। जितनी जल्दी बच्चा पैदा होता है, मृत्यु या गंभीर विकलांगता का जोखिम ऐसे बच्चे में ज्यादा पाया जाता है। 

कारण क्या है प्रीमैच्‍योर लेबर डिलीवरी के ?

प्रीमैच्‍योर डिलीवरी के कई कारण हो सकते हैं, जिनका प्रस्तुतिकरण हम निम्न में करेंगे..,

  • 18 से कम या 35 वर्ष से ज्यादा उम्र के बाद की गर्भावस्था का होना। 
  • पिछली गर्भावस्था में प्रीमैच्योर डिलीवरी का होना। 
  • गर्भ में जुड़वां या उससे ज्यादा भ्रूण का बनना। 
  • मधुमेह की समस्या। 
  • उच्च रक्तचाप। 
  • पोषक तत्वों में कमी। 
  • किसी प्रकार का संक्रमण जैसे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन। 
  • आनुवंशिक प्रभाव भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता हैं। 

कारण जानने के बाद यदि आपको समय से पहले प्रसव होने वाला हैं, तो पेनलेस नार्मल डिलीवरी आपके लिए ऐसी अवस्था में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। 

प्रीमैच्‍योर लेबर डिलीवरी के संकेत क्या हैं ?

इसके बहुत से संकेत हैं, जिनमे से कुछ को हम निम्न में प्रस्तुत कर रहें हैं..,

  • अचानक से पानी की थैली का फटना। 
  • वेजाइनल डिस्चार्ज। 
  • पेट के निचले हिस्से में ऐंठन। 
  • मतली और उल्टी। 
  • पेट में संकुचन। 
  • पीठ में दर्द। 
  • डायरिया या फिर उसके बिना भी पेट में तेज दर्द का होना।

यदि आपको प्रेगनेंसी के दौरान उपरोक्त संकेत दिखाई दे तो किसी अच्छे गायनोलॉजिस्ट का बिना समय बर्बाद किए चुनाव करें।

इलाज क्या हैं समय से पहले प्रसव या प्रीमैच्‍योर डिलीवरी को रोकने का ?

इसके कई इलाज हैं, जिससे की प्रीमैच्‍योर डिलीवरी को रोकने में हम सहायक सिद्ध हो सकते हैं, जैसे..,

  • यदि आपमें प्रीमैच्‍योर डिलीवरी का खतरा बनता हैं तो डॉक्टर इलाज के दौरान आपको हॉर्मोन ट्रीटमेंट देते हैं। जिससे की गर्भावस्था के 16वें से 37वें हफ्ते तक महिला के शरीर में प्रोजेस्ट्रोन नाम का हॉर्मोन स्थापित होता है।
  • जिन महिलाओं का गर्भाशय ग्रीवा कमजोर होने लगता है, उन्हें सर्वाइकल सेरेक्लेज ट्रीटमेंट दिया जाता हैं। 
  • समय से पहले प्रसव किसी संक्रमण की वजह से भी हो सकता है। तो ऐसे में डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
  • स्टेरॉयड का इलाज गर्भाशय में डॉक्टर इसलिए करते है ताकि समय से पहले जन्म लेना वाला बच्चा सुरक्षित रह सकें। 
  • कुछ अनुभवियों का कहना हैं कि टोकोलाइसिस की दवाई के सेवन से प्रीमैच्‍योर डिलीवरी के खतरे को कुछ समय के लिए टाला जा सकता हैं। पर इस पर रिसर्च अभी चल ही रही हैं।

यदि आप समय से पहले प्रीमैच्‍योर की समस्या से निजात पाना चाहते हैं। तो आप किसी अच्छे गायनी हॉस्पिटल का चुनाव करें। इसके इलावा आप लुधियाना गैस्ट्रो गायनी सेंटर का चुनाव भी कर सकते हैं और इस समस्या के बारे में यहाँ के अनुभवी डॉक्टर कार्तिक गोयल और डॉक्टर शुचिता बत्रा से भी सलाह ले सकते हैं।

निष्कर्ष :

यदि आप समय से पहले होने वाले प्रीमैच्‍योर लेबर के संकेतो के बारे में जान चुके हैं। तो बिना समय गवाए किसी अच्छे डॉक्टर का चुनाव करके इस परेशानी से हल पाए और अपनी डिलीवरी को समय पर करवाए। बस इसमें आपको थोड़ी सी सतर्कता बरतने की जरूरत हैं ताकि बाद में आपको किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े।